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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रमण-सूत्र ( २ ) अप्रमाद-प्रतिलेखना ( १ ) नर्तित - प्रतिलेखना करते हुए शरीर और वस्त्र आदि को इधर-उधर नचाना न चाहिए । (२) अवलित - प्रतिलेखना करते हुए वस्त्र कहीं से मुड़ा हुआ न होना चाहिए । प्रतिलेखन करने वाले को भी अपने शरीर को विना मोड़े सीधे बैठना चाहिए । अथवा प्रतिलेखना करते हुए वस्त्र और शरीर को चंचल न रखना चाहिए । (३) अननुबन्धी- - वस्त्र को अतना से भड़काना नहीं चाहिए । ( ४ ) मोसली - धान्यादि कूटते समय ऊपर, नीचे और तिरछा लगने वाले मूसल की तरह प्रतिलेखना करते समय वस्त्र को ऊपर, नीचे या तिरछा दीवार आदि से न लगाना चाहिए । (५) षट् पुरिमनवस्फोटका - ( छः पुरिमा नव खोडा ) प्रतिलेखना में छः पुरिम और नव खोड करने चाहिएँ । वस्त्र के दोनों हिस्सों को तीन-तीन बार खंखेरना, छः पुरिम हैं । तथा वस्त्र को तीन-तीन बार पूँज कर उसका तीन बार शोधन करना, नव खोड हैं । (६) पाणि-प्राण विशोधन-वस्त्र आदि पर कोई जीव देखने में श्राए तो उसका यतनापूर्वक अपने हाथ से शोधन करना चाहिए । [ ठाणांग सूत्र ] ( ३ ) प्रमाद-प्रतिलेखना ( १ ) आरभटा - विपरीत रीति से अथवा शीघ्रता से प्रतिलेखना करना । अथवा एक वस्त्र की प्रतिलेखना बीच में अधूरी छोड़कर दूसरे वस्त्र की प्रतिलेखना करने लग जाना, वह औरभटा प्रतिलेखना है । For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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