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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३६६ श्रव्वाबाहं = श्रव्याबाध, बाधा से ठाणं = स्थान, पद को रहित अपुणरावित्ति= अपुनरावृति, पुनरा मगन से रहित, (ऐसे ) सिद्धिगइनामधेयं = सिद्विगति नामक श्रमण-सूत्र Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir संपत्ताणं : = प्राप्त करने वाले नमो = नमस्कार हो जिणारां = जिन भगवान को जियभयाणं = भय पर विजय पाने बालों को भावार्थ श्री अरिहंत भगवान् को नमस्कार हो । ( अरिहंत भगवान् कैसे है ? ) धर्म की आदि करने वाले हैं, धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले हैं, अपने आप प्रबुद्ध हुए हैं । पुरुषों में श्रेष्ठ हैं, पुरुषों में सिंह हैं, पुरुषों में पुण्डरीक कमल हैं, पुरुषों में श्रेष्ट गन्ध हस्ती हैं । लोक में उत्तम हैं, लोक के नाथ हैं, लोक के हितकर्ता हैं, लोक में दीपक हैं, लोक में उद्योत करने वाले हैं । अभय देने वाले हैं, ज्ञान रूपी नेत्र के देने वाले हैं, धर्ममार्ग के देने वाले हैं, शरण के देने वाले हैं, धर्म के दाता हैं, उपदेशक हैं, धर्म के नेता हैं, धर्म के सारथी-संचालक हैं । धर्म के चार गति के अन्त करने वाले श्रेष्ठ धर्म के चक्रवर्ती हैं, अप्रतिहत एवं श्रेष्ठ ज्ञान दर्शन के धारण करने वाले हैं, ज्ञानावरण आदि घातिक कर्म से अथवा प्रमाद से रहित हैं । स्वयं राग-द्वेष के जीतने वाले हैं, दूसरों को जिताने वाले हैं, स्वयं संसार-सागर से तर गए हैं, दूसरों को तारने वाले हैं, स्वयं बोध पा चुके हैं, दूसरों को बोध देने वाले हैं, स्वयं कर्म से मुक्र हैं, दूसरों को मुक कराने वाले हैं । सर्वज्ञ हैं, सर्वदर्शी हैं। तथा शिवकल्याणरूप For Private And Personal अचल = स्थिर,
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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