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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४ www.kobatirth.org पडिक्कमिउं = प्रतिक्रमण इच्छामि = चाहता हूँ मे = मैंने जो = जो देवसि = दिवससम्बन्धी इयारो = श्रतिचार श्रमण-सूत्र नवरहं वंभचेरगुत्तीणं, दसव समधमे समणाणं जोगाणं, जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । शब्दार्थ करना को = किया हो [ कैसा प्रतिचार ? ] काइनो = काय-सम्बन्धी वाइयो = वचन - सम्बन्धी माणसिश्रो = मन- सम्बन्धी [तीनों का विशदीकरण ] उस्सुत्तो = सूत्र- विरुद्ध उम्मग्गो = मार्ग-विरुद्ध कप्पो = श्राचारविरुद्ध करणिज्जो = न करने योग्य दुज्झात्रो = दुर्ध्यानरूप दुब्विचिति = दुश्चिन्तर्नरूप अरणायारो = आचरने योग्यं 警 अणिच्छियन्वी = न चाहने योग्य समणपाउरंगो= साधू का अनुचित Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ये प्रतिचार किंविषयक होते हैं ? ] नाणे = ज्ञान में तह = तथा. द'सणे = दर्शन में, चरिते = चारित्र में [ तीनों के भेद ] ** सुए = श्रुत ज्ञान में सामाइए = सामायिक चारित्र में उपसंहार ] तिरहं = तीन गुत्तीण = गुतियों की चउरह चार कसायाण = कषायों के निषेधोंकी पंचरहं = पाँच महल्वाण - महावतों की 爱 छरहं = छह tail कायारण जीवनिकायों की सत्तरहं = सात विसरणारा = पिण्डेषणाओं की अठरह = श्राठ For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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