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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir निर्विकृतिक-सूत्र बना 'शरीर के लिए पौष्टिक आहार सर्वथा प्रहार, कभी-कभी शरीर को क्षीण पौष्टिक आहार लिया जाय तो कोई हानि नहीं है । परन्तु विकृति का सेवन करना, निषिद्ध है । जो साधु नित्य प्रति सेवन करता है, उसे शास्त्रकार पापश्रमण बतलाते हैं । . ३३७ वर्जित नहीं है । सर्वथा शुष्क देता है । अतः यदा कदा नित्य-प्रति विकृति का निर्विकृति के नौ आगार हैं । आठ आगारों का वर्णन तो पहले के पाठों में यथास्थान श्राचुका है । प्रतीत्यम्रक्षित नामक ग्रागार नया है । भोजन बनाते समय जिन रोटी यादि पर सिर्फ़ उँगली से घी आदि चुपड़ा गया हो ऐसी वस्तुओं को ग्रहण करना, प्रतीत्य म्रक्षित' आगार कहलाता है। इस श्रागार का यह भाव है कि आदि विकृति का का त्याग करने वाला साधक धारा के रूप में घृत आदि नहीं खा सकता | हाँ घी से साधारण तौर पर चुपड़ी हुई रोटियाँ खा सकता है । "प्रतीत्य सर्वथा रूचमडकादि, ईषत्सौकुमार्य प्रतिपादनाय यद्गुल्या ईषद घृतं गुहीत्वा क्षितं तदा कल्पते, न तु धारया" - तिलकाचार्य-कृत, देवेन्द्र प्रतिक्रमण वृत्ति विकृति द्रव और द्रव के भेद से दो प्रकार की होती हैं। जो घृत, बैल आदि विकृति द्रव हों, तरल हों, उनके प्रत्याख्यान में उत्क्षिप्तविवेक का आगार नहीं रक्खा जाता । गुड़ और पक्वान्न आदि द्रव अर्थात् शुष्क विकृतियों के प्रत्याख्यान में ही उक्त श्रागार होता है । किसी एक विकृति- विशेष का त्याग करना हो तो उसका नाम लेकर पाठ बोलना चाहिए। जैसे 'दुद्धविगइयं पञ्चक्खामि' 'दधिर्विगढ़ यं पच्चक्खामि' इत्यादि । For Private And Personal 1 १ ' म्रक्षित' चुपड़े हुए को कहते हैं । और प्रतीत्य म्रक्षित कहते है --- जो अच्छी तरह चुपड़ा हुआ न हो, किन्तु चुपड़ा हुआ जैसा हो, अर्थात् म्रक्षिताभास हो । 'श्रक्षितमिव यद् वर्तते तत्प्रतीत्यम्रक्षित चिताभासमित्यर्थः । प्रवचन सारोद्धार वृत्ति
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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