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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir एक स्थान-सूत्र प्रागार नहीं है, तब हाथ और मुख का चालन भी कैसे हो सकता है ? समाधान है कि एक स्थान में एक बार भोजन करने का विधान है। और भोजन हाथ तथा मुख की चलन-क्रिया के बिना अशक्य है। अतः अशक्य-परिहार होने से दाहिने हाथ और मुख की चलन क्रिया अप्रतिषिद्ध है। 'मुखस्य हस्तस्य च अशक्यपरिहारत्वाञ्चलनमप्रतिषिद्धमिति ।। -प्रवचन सारोद्धार वृत्ति । एक स्थान भी चतुर्विधाहार, त्रिविधाहार, एवं द्विविधाहार रूप से अनेक प्रकार का है । वर्तमान परंपरा के अनुसार हमने केवल त्रिविधाहार ही मूल पाठ में रक्खा है। यदि चतुर्विधाहार श्रादि करने हों तो एकाशन के विवेचन में कथित पद्धति के अनुसार पाठ-भेद करके किए जा सकते हैं। ___एक स्थान का महत्त्व तपश्चरण की दृष्टि से तो है ही; परन्तु शरीर की चंचलता हटा कर एकाग्र मनोवृत्ति से भोजन करने का और अधिक महत्त्व है। शरीर को निःस्पन्द-सा बना कर और तो क्या खाज भी न खुजला कर काय गुप्ति के साथ भोजन करना सहज नहीं है। ऐसी स्थिति में भोजन भी कम ही किया जाता है। - 'एक स्थान के प्रत्याख्यान पर से फलित होता है कि साधर्क को प्रत्येक क्रिया सावधानी के साथ संयम पूर्वक करनी चाहिए । संयम पूर्वक भुजिक्रिया करते हुए भी जीवन शुद्धि का मार्ग प्रशस्त बन सकता है और तप की आराधना हो सकती है। For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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