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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir एकाशन सूत्र ३१६ पाण' खाइमं साइमं बोलना चाहिए। यदि दुविहार करना हो तं 'दुविपि श्रहारं असण' खाइमं' बोलना चाहिए । दुविहार एकाशन की परंपरा प्राचीन काल में थी, परन्तु आज के युग में नहीं है । एकासन में आठ गार होते हैं। चार आगार तो चुके हैं, शेष चार श्रागार नये हैं । उनका स्पष्टीकरण इस पहले आ ही प्रकार है: ( १ ) सागारिकाकार- कागम की भाषा में सागारिक गृहस्थ को कहते हैं । गृहस्थ के आ जाने पर उसके सम्मुख भोजन करना निषिद्ध है | अतः 'सागारिक के आने पर साधु को भोजन करना छोड़कर यदि बीच में ही उठकर, एकान्त में जाकर पुनः दूसरी बार भोजन करना पड़े तो व्रत भङ्ग का दोष नहीं लगता । गृहस्थ के लिए सागारिक का अर्थ है-वह जिसके आने पर भोजन करना उचित न हो । For Private And Personal लोभी एवं क्रूर व्यक्ति, अस्तु २ क्रूर दृष्टि वाले १ आचार्य जिनदास ने श्रावश्यक चूर्णि में लिखा है कि श्रागन्तुक गृहस्थ यदि शीघ्र ही चला जाने वाला हो तो कुछ प्रतीक्षा करनी चाहिए, सहसा उठकर नहीं जाना चाहिए । यदि गृहस्थ बैठने वाला है, शीघ्र ही नहीं जाने वाला है, तब अलग एकान्त में जाकर भोजन से निवृत्त हो लेना चाहिए । व्यर्थ में लम्बी प्रतीक्षा करते रहने में स्वाध्याय आदि की हानि होती है । 'सागारियं श्रद्धसमुद्दिट्ठस्स श्रागतं जदि बोलेति पडिच्छति, ग्रह थिरं ताहे सज्झायवाघातो त्ति उत्ता नत्थ गंतूणं समुद्दिसति ।' सर्प और आदि का उपद्रव होने पर भी अन्यत्र जाकर भोजन किया जा सकता है । सागारिक शब्द से सर्पादि का भी ग्रहण है । २ जैन धर्म छुआछूत के चक्कर में कार' का यह अर्थ नहीं है कि कोई श्रा जाय तो भोजन छोड़कर भाग नहीं है । अतएव ' सागारिका अछूत या नीची जाति का व्यक्ति खड़ा होना चाहिए । साधु के लिए
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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