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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २६६ श्रमण-सूत्र निवेदन करता है । गुरुदेव की ओर से प्राशा मिल जाने के बाद पुनः अर्धावनत काय से 'अणुजाणह मे मिउग्गह' कह कर अवग्रह में प्रवेश करने की आज्ञा माँगता है। यह प्रथम अवनत आवश्यक है। अवग्रह से बाहर आकर प्रथम खमासमणो पूर्ण कर लेने के बाद जब दूसरा खमासमणो पढ़ा जाता है, तब पुनः इसी प्रकार अर्धावनत होकर वंदन करने के लिए इच्छा निवेदन करना एवं अवग्रह में प्रवेश करने की आज्ञा माँगना, यह दूसरा अवनत आवश्यक है । दो प्रवेश गुरुदेव की ओर से अवग्रह में प्रवेश करने की आज्ञा मिल जाने के बाद मुख से निसीहि कहता हुआ एवं रजोहरण से श्रागे की भूमि को प्रमार्जन करता हुआ जब शिष्य अवग्रह में प्रवेश करता है, तब प्रथम प्रवेश श्रावश्यक होता है। इसी प्रकार एक बार अवग्रह से बाहर अाकर दूसरा खमासमणो पढ़ते समय जब पुनः दूसरी बार अवग्रह में प्रवेश करता है, तब दूसरा प्रवेश आवश्यक होता है । बारह आवर्त गुरुदेव के चरणों के पास उकडू या गोदुह अासन से बैठे, रजोहरण एक अोर बराबर में रख छोड़े । पश्चात् दोनों घुटने टेककर दोनों हाथों को लम्बा करके गुरु चरणों को हाथ की दशों अंगुलियों से स्पर्श करता हुअा 'अ' अक्षर कहे और फिर दशों अँगुलियों से अपने मस्तक का स्पर्श करता हुआ 'हो' अक्षर कहे, यह प्रथम आवर्त है। इसी प्रकार 'कायं' और 'काय' के भी दो आवर्त समझ लेने चाहिएँ । इसके बाद कमल मुद्रा में दोनों हाथों को जोड़कर मस्तक पर लगाए और खमाणजो भे से लेकर दिवसों वइक्कतो तक पाठ बोले । अनन्तर दोनों हाथों को लम्बा करके दशों अँगुलियों से गुरुचरणों को १ कुछ प्राचार्य कमल मुद्रा से कहते हैं । For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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