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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भयादि-सूत्र १६१ (१) एक भास का प्रायश्चित (२) एक मास पाँच दिन का प्रायश्चित (३) एक मास दश दिन का प्रायश्चित्त । इसी प्रकार पाँच दिन बढ़ाते हुए पाँच मास तक कहना चाहिए । इस प्रकार २५ हुए । (२६ उपघातक अनुमघातक (२७) अारोपण और (२८) कृत्स्न-सम्पूर्ण', अकृत्स्न-अस पूर्ण ।” पूज्यश्रीजी के उपर्युक्त लेख की समवायांग सूत्र के मूल पाठ से संगति नहीं बैठती। वहाँ मासिक अारोपणा के छह भेद किए हैं । इसी प्रकार द्विमासिकी, त्रिमासिकी एवं चतुर्मासिकी ग्रारोपणा के भी क्रमशः छः छः भेद होते हैं । सब मिलकर ग्रारोपणा के अबतक २४ भेद हुए, हैं, जिन्हें पूज्यश्रीजी २५ लिखते हैं । अब शेष चार भेद भी समचायांग सूत्र के मूल पाठ में ही देख लीजिए, 'उवघाइया आरोवणा, अणुव घाइया प्रारोवणा, कसिणा आरोवणा, अकसिणा आरोवणा ।'उक्त मूल सूत्र के प्राकृत नामों का सस्कृत रूपान्तर है-उपघातिक आरोपणा, अनुपघातिक यारोपणा. कृत्स्न अारोपणा और अकृत्स्न अारोपणा । जो कुछ हमने ऊपर लिखा है, इसका समर्थन, समवायांग के मूल पाठ और अभय देव-कृत वृत्ति से स्पष्टतः हो जाता है। अस्तु, हम विचार में हैं कि प्राचार्य श्री जी ने प्रथम के २४ भेदों को २५ कैसे गिन लिया ? और बाद के चार भेदों के तीन ही भेद बना लिए । प्रथम के दो भेदों को मिलाकर एक भेद कर लिया । और आरोपणा, जो कि स्वयं कोई भेद नहीं है, प्रत्युत सब के साथ विशेष्य रूप से व्यवहृत हुआ है, उसको सत्ताईसवे भेद के रूप में स्वतन्त्र भेद मान लिया है । और अन्तिम दो भेदों का फिर अट्ठाईसवे भेद के रूप में एकीकरण कर दिया गया है। इस सम्बन्ध में अधिक न लिखकर सक्षेप में केवल विचार सामग्री उपस्थित की है, ताकि सत्यार्थ के निर्णय के लिए तत्त्वजिज्ञासु कुछ विचार-विमर्श कर सके। __ याचार-प्रकल्प के २८ अध्ययनों में वर्णित साध्वाचार का सम्यकरूप से पाचरण न करना, अतिचार है। For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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