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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रमण-सूत्र पण्डित प्रवर सुखलालजी ने अपने पञ्चप्रतिक्रमण-सूत्र में पारिठा पनिकागार के विषय में लिखा है-'चउठिवहाहार उपवास में पानी, तिविहाहार उपवास में अन्न और पानी, तथा आयंबिल में विगइ, अन्न एवं पानी लिया जा सकता है।' . तिविहाहार अर्थात् त्रिविधाहार उपवास में पानी लिया जाता है । अतः जल सम्बन्धी छः अागार मूल पाठ में 'सव्वसमाहिवत्तियागारेणं' के आगे इस प्रकार बढ़ा कर बोलने चाहिएँ--'पाणस्स लेवाडेण वा, अलेवाडेण वा, अच्छेण वा, बहलेण वा, ससित्थेग्ण वा, असित्येण वा वोसिरामि ।' ___ उक्त छः अागारों का उल्लेख जिनदास महत्तर, हरिभद्र और सिद्धसेन आदि प्रायः सभी प्राचीन प्राचार्यों ने किया है । केवल उपवास में ही नहीं अन्य प्रत्याख्यानों में भी जहाँ त्रिविधाहार करना हो, सर्वत्र उपयुक्त पाठ बोलने का विधान है । यद्यपि प्राचार्य जिनदास प्रादि ने इस का उल्लेख अभक्तार्थ के प्रसंग पर ही किया है। उक्त जल सम्बन्धी प्रागारों का भावार्थ इस प्रकार है: (१) लेपकृत-दाल आदि का माँड तथा इमली, खजूर, द्राक्षा आदि का पानी । वह सब पानी जो पात्र में उपले कारक हो, लेपकृत कहलाता है। त्रिविधाहार में इस प्रकार का पानी ग्रहण किया जा सकता है। (२) अलेपकृत-छाछ श्रादि का निथरा हुया और काँजी आदि का पानी अलेपकृत कहलाता है । अलेपकृत पानी से वह धोवन लेना चाहिए, जिसका पात्र में लेप न लगता हो । (३) अच्छ-अच्छ का अर्थ स्वच्छ है । गर्म किया हुआ स्वच्छ पानी ही अच्छ शब्द से ग्राह्य है। हाँ, प्रवचन सारोद्धार की वृत्ति के रचयिता प्राचार्य सिद्धसेन उष्णोदकादि कथन करते हैं। 'अपिच्छलात् उष्णोदकादेः ।' परन्तु आचार्यश्री ने स्पष्टीकरण नहीं किया कि श्रादि से उष्णजल के अतिरिक्त और कौन सा जल ग्राह्य है ? संभव है फल For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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