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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३१८ श्रमण-सूत्र श्रावक अर्थात् गृहस्थ के लिए पारिट्ठावणियागार' नहीं होता; अतः उसे मूल पाठ बोलते समय 'पारिट्ठावणियागारेणं' नहीं बोलना चाहिए।' ___ एकाशन के समान ही द्विकाशन का भी प्रत्याख्यान होता है । द्विकाशन में दो बार भोजन किया जा सकता है । द्विकाशन करते समय मूल पाठ में 'एगास' के स्थान में 'वियासर्ण' बोलना चाहिए । एकाशन और द्विकाशन में भोजन करते समय तो यथेच्छ चारों आहार लिए जा सकते हैं; परन्तु भोजन के बाद शेष काल में भोजन का त्याग होता है। यदि एकाशन तिविहार करना हो तो शेष काल में पानी पिया जा सकता है। यदि चउविहार करना हो तो पानी भी नहीं पिया जा सकता। यदि दुविहार करना हो तो भोजन के बाद पानी तथा स्वादिम = मुखवास लिया जा सकता है। आजकल तिविहार एकाशन की प्रथा ही अधिक प्रचलित है, अतः हमने मूल पाठ में 'तिविहं' पाठ दिया है। यदि चउविहार करना हो तो 'चडविहं पि श्राहारं असणं १ गृहस्थ के प्रत्याख्यान में 'पारिट्ठावणियागार' का विधान इस लिए नहीं है कि गृहस्थ के घर में तो बहुत अधिक मनुष्यों के लिए भोजन तैयार होता है। इस स्थिति में प्रायः कुछ न कुछ भोजन के बचने की संभावना रहती ही है। अस्तु, गृहस्थ यदि पारिहापणियागार करे तो कहाँ तक करेगा ? और क्या यह उचित भी होगा ? . दूसरी बात यह है कि गृहस्थ के यहाँ भोजन बच जाता है तो वह रख लिया जाता है, परठा नहीं जाता है। और उसका अन्य समय पर उचित उपयोग कर लिया जाता है । - साधु की स्थिति इससे भिन्न है। वह अवशिष्ट भोजन को, यदि अागे रात्रि आ रही हो तो रख नहीं सकता है, परठता ही है । अतः उस समय तपस्वी मुनि, यदि परिष्ठाप्य भोजन का उपयोग कर ले तो कोई दोष नहीं है। For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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