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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रख्यान-सूत्र नमस्कारिका चतुर्विधाहार-त्यागरूप होती है या त्रिविधाहारत्यागरूप ? इस प्रश्न के सम्बन्ध में यह वक्तव्य है कि नमस्कारिका चतुविधाहार त्यागरूप ही होती है । नमस्कारिका का कालमान एक मुहूर्तभर ही होता है, अतः वह अल्पकालिक होने से चतुर्विधाहार त्यागरूप ही है। प्राचीन परंपरा भी ऐसी ही है । 'चतुर्विधाहारस्यैव भवतीति वृद्धसम्प्रदायः----प्रवचन सारोद्धार वृत्ति । नमस्कारिका में दो श्रागार माने गए हैं-अनाभोग और सहसाकार। आजकल के कुछ विद्वान, अपने प्रतिक्रमण सूत्र में, नौकारसी के चार या पाँच भागार भी लिखते हैं, परन्तु यह लेख परंपरा-विरुद्ध है। प्राचीन श्राचार्य हेमचन्द्र आदि, दो ही श्रागार बतलाते हैं-'नमस्कारसहिते प्रत्याख्याने द्वौ आकारी भवतः' ----योग शास्त्र, तृतीय प्रकाश वृत्ति । ___ प्राचार्य भद्रबाहु स्वामी ने भी नमस्कारिका के दो ही श्रागार माने हैं-'दो चेव नमोक्कारे । श्रावश्यक नियुक्ति, गाथा १५६६ । है, अतः जब कभी अन्य समय में किया जाय, तब 'उग्गए सूरे यह अंश नहीं बोलना चाहिए। For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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