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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रावश्यक दिग्दर्शन 'पाणिमद्भ्यः स्पृहाऽस्माकम् ।' देखिए, एक मस्तराम क्या धुन लगा रहे हैं ? उनका कहना है'मनुष्य दो हाथ घाला ईश्वर है।' द्विभुजः परमेश्वरः।' महाराष्ट्र के महान् सन्त तुकाराम कहते हैं कि 'स्वर्ग के देवता इच्छा करते हैं- 'हे प्रभु ! हमें मृत्यु लोक में जन्म चाहिये । अर्थात् हमें मनुष्य बनने की चाह है !! स्वर्गी चे अमर इच्छितातो देवा; मृत्युलोकी ह्वाचा जन्म आम्हां । सन्त श्रेष्ठ तुलसीदास बोल रहे हैं : 'बड़े भाग मानुष तन पापा, सुर-दुर्लभ सब ग्रन्थन्हि गावा।' ज़रा उर्दू भाषा के एक मार्मिक कवि की वाणी भी सुन लीजिए । आप भी मनुष्य को देवताओं से बढ़कर बता रहे हैं 'फ़रिश्ते से बढ़कर है इन्सान बनना, मगर इसमें पड़ती है मेहनत ज़ियादा।' बेशक, इन्सान बनने में बहुत ज़ियादा मेहनत उठानी पड़ती है, बहुत अधिक श्रम करना होता है। जैनशास्त्रकार, मनुष्य बनने की साधना के मार्ग को बड़ा कठोर और दुर्गम मानते हैं । औपपातिक सूत्र में भगवान् महावीर का प्रवचन है कि "जो प्राणी छल, कपट से दूर रहता है-प्रकृति अर्थात् स्वभाव से ही सरल होता है, अहंकार से शून्य होकर विनयशील होता है-सब छोटे-बड़ों का यथोचित आदर सम्मान करता है, दूसरों की किसी भी प्रकार की उन्नति को देखकर डाह नहीं करता है-प्रत्युत हृदय में हर्ष और अानन्द की स्याभाविक अनुभूति करता है, जिसके रग-रग में दया का संचार है--जो किसी भी दुःखित गर.. For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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