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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir शरीरमाश्रमण सब इच्छा कि द्वादशावर्त गुरुवन्दन-सूत्र भावार्थ [२. इच्छा निवेदन स्थान] हे क्षमाश्रमण गुरुदेव ! मैं पाप प्रवृत्ति से अलग हटाए हुए अपने शरीर के द्वारा यथाशक्ति आपको वन्दन करना चाहता हूँ। [२. अनुज्ञापना स्थान ] अतएव मुझको अवग्रह में = आपके चारों ओर के शरीर-प्रमाण क्षेत्र में कुछ परिमित सीमा तक प्रवेश करने की आज्ञा दीजिए। मैं अशुभ व्यापारों को हटाकर अपने मस्तक तथा हाथ से आपके चरण कमलों का सम्यग रूप से स्पर्श करता हूँ। चरण स्पर्श करते समय मेरे द्वारा प्रापको जो कुछ भी बाधा = पीड़ा हुई हो, उसके लिए क्षमा कोजिए। [३. शरीरयात्रा पृच्छा स्थान] क्या ग्लानि रहित श्रापका आज का दिन बहुत मानन्द से व्यतीत हुआ ? [४. संयमयात्रा पृच्छर स्थान] ... क्या आपकी तप एवं संयम रूप यात्रा निर्बाध है ? [५. संयम मार्ग में यापनीयता=मन,वचन, काय के सामर्थ्य की पृच्छा का स्थान] क्या आपका शरीर मन तथा इन्द्रियों की बाधा से रहित सकुशल एवं स्वस्थ है ? [६. अपराध-क्षमापना स्थान] हे क्षमाश्रमण गुरुदेव ! मुझसे दिन में जो ठअतिक्रम-अपराध हुआ हो, उसके लिए क्षमा करने की कृपा करें । भगवन् ! आवश्यक क्रिया करते समय मुझसे जो भो विपरीत आचरण हुश्रा हो, उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। हे क्षमाश्रमण गुरुदेव ! जिस किसी भी मिथ्याभाव से, द्वष से, For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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