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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मानव जीवन का महत्त्व - " जिस क्षण देवता मेरुशिखर से उड़े, कल्पना करो, उसी क्षण किसी गृहस्थ के यहाँ एक हजार वर्ष की आयु वाला पुत्र उत्पन्न हुआ | कुछ वर्ष पश्चात् माता-पिता परलोकवासी हुए । पुत्र बड़ा हुआ और उसका विवाह होगया । वृद्धावस्था में उसके भी पुत्र हुआ और बूढ़ा हजार वर्ष की आयु पूरी करके चल बसा । " गौतम स्वामी ने बीच में ही तर्क किया - "भन्ते ! वे देवता, जो यथाकथित शीघ्र गति से लोक का अन्त लेने के लिए निरन्तर दौड़ लगा रहे थे, हजार वर्ष में क्या लोक के छोर तक पहुँच गए ?" भगवान् महावीर ने वस्तुस्थिति की गम्भीरता पर बल देते हुए कहा -- " गौतम, अभी कहाँ पहुँचे हैं ? इसके बाद तो उसका पुत्र, फिर उसका पुत्र, फिर उसका भी पुत्र, इस प्रकार एक के बाद एकएक हजार वर्ष की आयु वाली सात पीढ़ी गुजर जायँ, इतना ही नहीं, उनके नाम गोत्र भी विस्मृति के गर्भ में विलीन हो जायँ, तब तक वे देवता चलते रहें, फिर भी लोक का अन्त नहीं प्राप्त कर सकते । इतना महान् और विराट है यह संसार " - भगवती १९, २०, सू० ४२१ । जैन साहित्य में विश्व की विराटता के लिए चौदह राजु की भी एक मान्यता है । मूल चौदहराज और वर्ग कल्पना के अनुसार तीन सौ से कुछ अधिक राजु का यह संसार माना जाता है । एक व्याख्याकार राजु का परिमाण बताते हुए कहते हैं कि कोटिमण लोहे का गोला यदि ऊँचे प्रकाश से छोड़ा जाय और वह दिन रात अविराम गति से नीचे गिरता - गिरता छह मास में जितना लम्बा मार्ग तय करे, वह एक राजु की विशालता का परिमाण है । विश्व की विराटता का अब तक जो वर्णन आपने पढ़ा है, सम्भव है, आपकी कल्पना शक्ति को स्पर्श न कर सके और आप यह कह कर अपनी बुद्धि को सन्तोष देना चाहें कि यह सब पुरानी गाथा है, किंवदन्ती है । इसके पीछे वैज्ञानिक विचार धारा का कोई आधार नहीं For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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