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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २०२ श्रमण-सूत्र नहीं, काल ही विश्व का कर्ता हर्ता है, काल देव या ईश्वर है, प्रतिलेखना आदि के अमुक निश्चित काल क्यों माने गए हैं ? इत्यादि विचार काल की अाशातना है। श्रत को आशातना ____ जैन-धर्म में श्रुत ज्ञान को भी धर्म कहा है। विना श्रुत-ज्ञान के चारित्र कैसा ? श्रुत तो साधक के लिए तीसरा नेत्र है, जिमके विना शिव बना ही नहीं जा सकता। इसीलिए प्राचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं 'श्रागम-चक्खू साहू।' श्रुत की अाशातना साधक के लिए अतीव भयावह है। जो श्रुत की अवहेलना करता है, वह साधना की अवहेलना करता है--धर्म की अवहेलना करता है । श्रुत के लिए अत्यन्त श्रद्धा रखनी चाहिए। उसके लिए किसी प्रकार की भी अवहेलना का भाव रखना घातक है। प्राचार्य हरिभद्र श्रुत आशातना के सम्बन्ध में कहते हैं कि "जैन श्रुत साधारण भाग प्राकृत में है, पता नहीं, उसका कोन निर्माता है ? वह केवल कठोर चारित्र धर्म पर ही बल देता है। अत के अध्ययन के लिए काल मर्यादा का बन्धन क्यों है ? इत्यादि विपरीत विचार और वर्तन श्रुत की अाशातना है।" श्रुत-देवता की आशातना श्रुत-देवता कौन है ? और उसका क्या स्वरूप है ? यह प्रश्न बड़ा ही विवादास्पद है। स्थानकवामी परंपरा में श्रुत देवता का अर्थ किया जाता है----'श्रुतनिर्माता तीर्थकर तथा गणधर ।' वह श्रुत का मूल अधिष्ठाता है, रचयिता है, अतः वह उसका देवता है। प्राचार्य श्रीआत्मारामजी, भीयाणी हरिलाल जीवराज भाई गुजराती, जीवणलाल छगनलाल संघवी आदि प्रायः सभी लेखक ऐसा ही अर्थ करते हैं । ___परन्तु श्वेताम्बर मूर्ति-पूजक परंपरा में 'श्रुत देवता' एक देवी मानी जाती है, जो श्रुत की अधिष्ठात्री के रूप में उनके यहाँ प्रसिद्ध है। यह मान्यता भी काफी पुरानी है। प्राचार्य जिनदाम भी इसका उल्लेग्य For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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