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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रमण सूत्र 'सिद्धाऽतिगुण' करते हैं । प्रतिगुण का भाव है - 'उत्कुष्ट, असा धारण गुण बत्तीस योग-संग्रह ( १ ) गुरुजनों के पास दोनों की आलोचना करना २) किसी के दोषों की आलोचना सुनकर और के पास न कहना ( ३ ) संकट पड़ने पर भी धर्म में दृढ़ रहना ( ४ ) श्रासक्ति रहित तप करना ( ५ ) सूत्रार्थं ग्रहणरूप ग्रहण - शिक्षा एवं प्रतिलेखना आदि रूप श्रासेवना आचार-शिक्षा का अभ्यास करना ( ६ ) शोभा श्रृंगार नहीं करना ( ७ ) पूजा प्रतिष्ठा का मोह त्याग कर अज्ञात तप करना ८ ) लोभ का त्याग ( ६ ) तितिक्षा | १० ) जंव = सरलता ( ११ ) शुचि = संयम एवं सत्य की पवित्रता ( १२ ) सम्यक्त्व शुद्धि ( १३. सम्माधि = प्रसन्न चित्तता ( १४ ) चार पालन में माया न करना ( १५ ) विनय ( १६ ) धैर्यं ( १७ ) संवेग = सांसारिक भोगों से भय अथवा मोक्षा भिलाषा (१८) माया न करना ( १६ ) सदनुष्ठान ( २० ) सौंवर : पाश्र्व को रोकना ( २१ ) दोषों की शुद्धि करना ( २२ ) काम भोग से विरक्ति ( २३ ) मूलगुणों का शुद्ध पालन ( २४ ) उत्तरगुणों का शुद्ध पालन २५) व्युत्सर्म करना (२६) प्रमाद न करना ( २७ ) प्रतिक्षण संयम यात्रा में सावधानी रखना ( २८ ) शुभ ध्यान ( २६ ) मारणान्तिक वेदना होने पर भी अधीर न होना ( ३० ) संग का परित्याग करना ( ३१ ) प्रायश्चित्त ग्रहण करना ( ३२ ) ग्रन्तः समयः में संलेखना करके आराधक बनना । [ समवायांग ] " आचार्य जिनदास बत्तीस योग-संग्रह का एक दूसरा प्रकार भी लिखते हैं। उनके उल्लेखानुसार धर्म ध्यान के सोलह भेद और इसी प्रकार शुक्ल ध्यान के सोलह भेद, सब मिल कर बत्तीस योगसंग्रह के भेद हो जाते हैं । 'धम्मो सोलसविधं एवं सुक्कंपि । For Private And Personal मन, वचन और काय के व्यापार को योग कहते हैं । शुभ और अशुभ भेद से योग के दो प्रकार हैं। अशुभ योग से निवृत्ति और शुभ योग में
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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