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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २३३ चिकया सूत्र विवेचन - आध्यात्मिक अर्थात् सयम-जीवन को दूषित करने वाली विरुद्ध एवं भ्रष्ट कथा को विकथा कहते हैं । 'विरुद्धा विनष्टा वा कथा विकथा' अाचार्य हरिभद्र । साधक को विकथाओं से उसी प्रकार दूर रहना चाहिए जिस प्रकार काल-सर्पिणी से दूर रहा जाता है। आगमों में विक्रथाओं को लेकर बड़ी लम्बी चर्चा की गयी है और इन्हें संयम को नष्ट करने वाली बताया गया है। ___ मानव जीवन की यह बहुत बड़ी दुर्बलता है कि वह व्यर्थ की चर्चाओं में अधिक रस लेता है । हजारों लोग इसी तरह गप्पों के फेर में पड़कर अपने महान् व्यक्तित्व के निर्माण में पश्चात्पद रह जाते हैं, और फिर सदा के लिए पछताया करते हैं । साधना के उच्च जीवन की बात छोड़िए, साधारण गृहस्थ की जिन्दगी पर भी विकथाओं का बड़ा घातक प्रभाव पड़ता है । विकथा के रस में पड़ कर मानवता न इस लोक में यशस्विनी होती है और न परलोक में। व्यर्थ ही रागद्वेष की गंदगी से अन्तहृदय दूषित होकर उभयतो भ्रष्ट हो जाता है। .. आजकल चारों ओर से बेकारी की पुकार आ रही है। मनुष्य की कीमत पशुओं से भी नीचे गिर गयी है। हर जगह ठाली बैठा हुआ मानव, अपने अभ्युत्थान के सम्बन्ध में कुछ भी न सोच कर विकथा के द्वारा जीवन नष्ट कर रहा है। अाज जापान के इतने जहाज नष्ट हो गए, श्राज अमरीका का बेड़ा डूब गया, आज इतने हजार सैनिक खेत रहे. आज सिनेमा संसार में रेणुका का नम्बर पहला है, वह बहुत मधुर गाने वाली एवं श्रेष्ठ नाचने वाली है, अाज अमुक के यहाँ दावत खूब ही अच्छी हुई, इत्यादि बे सिर-पैर की अर्थहीन बातों में हमारे जनसमाज का अमूल्य समय बर्बाद हो रहा है। क्या गृहस्थ, क्या साधु, दोनों ही वर्गों को इस विकथा की महामारी से बचने की आवश्यकता है। स्त्री कथा अमुक देश और अमुक जाति की अमुक स्त्री सुन्दर है अथवा कुरूप For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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