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बन्धन-सूत्र पडिकमामि दोहिं बंधणेहि
राग-बंधणेणं दोस-बंधणेणं।
शब्दार्थ पडिकमामिप्रति क्रमण करता हूँ रागबन्धणेणराग के बन्धन से दोहि = दोनों
दोसबन्धणेण=ष के बन्धन बन्धणेहिं - बन्धनों से
भावार्थ
दो प्रकार के बन्धनों से लगे दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ, अर्थात् उनसे पीछे हटता हूँ । ( कौन से बन्धनों से ? ) राग के बन्धन से, द्वष के बन्धन से।
विवेचन जन्म-मरण रूप ससार विष वृक्ष के दो ही बीज हैं--राग और द्वेष | राग आसक्ति को कहते हैं और द्वप अप्रीति को । मनुष्य ने शरीर और इन्द्रियों को ही सब कुछ माना हुआ है, इन्हीं की परिचर्या में सर्वस्व
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