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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रमण सूत्र है । तएव शास्त्रकार कहते हैं कि यदि साधु शीघ्रता से श्राहार लेता है और तत्कालीन परिस्थिति पर कुछ भी गंभीरतापूर्वक विचार नहीं करता है, तो वह सहसाकार दोष माना जाता है । पाणेसणाए बहुत-सी याधुनिक प्रतियों में असणाए के श्रागे पासणाए पाठ भी लिखा मिलता है । किन्तु किसी भी प्राचीन प्रति में इसका उल्लेख देखने में नहीं आया । न हरिभद्र आदि प्राचीन आचार्य ही आवश्यक सूत्र पर कीनी टीकाओं में इस सम्बन्ध में कुछ कहते हैं । वैसे भी यह व्यर्थ सा ही प्रतीत होता है । प्रस्तुत सूत्र में केवल गोचरचर्या सम्बन्धी दोषों की चर्चा है, यहाँ अन्न अथवा पानी की एषणा के सम्बन्ध में कोई पृथक संकेत नहीं हैं। जो भी दोत्र हैं, सत्र अन्न और जल दोनों पर सामान्यरूप से लगते हैं । पाणेसणाए का अर्थ होता है, पानी की एषणा से । मैं नहीं समझता, पूज्य श्री श्रात्मारामजी महाराज, किस आधार पर इस पद का यह अर्थ करते हैं कि- 'पानी की एषणा पूर्ण रीति से न की हो ।' 'पासणाए' में कहीं भी तो 'न' का प्रयोग नहीं है । एक और बात है – पूज्य श्रीजी मूल पाठ में इस शब्द का उल्लेख नहीं करते, किन्तु व्याख्या करते हुए इसे मूल पाठ मान कर अर्थ करते हैं । पता नहीं, मूल पाठ में न होते हुए भी यह शब्द व्याख्या में किस आधार पर मूल मान लिया गया ? . कुछ आधुनिक शुद्ध प्रतियों में 'पासणाए' भी है और उसके आगे 'भोया' पाठ भी है । परन्तु वह पाठ भी अर्थहीन है । संभव है, कुछ लोगों ने 'पासणाए' से पानी और 'भोयाए' से अन्नभोजन समझा हो । प्राणभोजना मूल शब्द 'पाणभोयणा' है । इसका संस्कृत रूप 'पानभोजना' बना कर कुछ विद्वान पानी और भोजन अर्थ करते हैं । परन्तु परंपरा के नाते और संगति के नाते यह अर्थ ठीक नहीं लगता । हरिभद्र For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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