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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ २ ] Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मदन मुनिजी ने देखा तो आप बड़े ही प्रभावित हुए । उनकी ओर का आग्रह हुआ कि इसे शीघ्र से शीघ्र पूरा कर दिया जाय । परन्तु श्राप जानते हैं जैन भिक्षु की 'जीवनचर्या' कहीं एक जगह जमकर बैठने की नहीं है । यहाँ चतुर्मास में ही थोड़ा बहुत लिखने का कार्य हो सकता है । फिर सब जगह प्राचीन और नवीन पुस्तक सामग्री भी तो नहीं मिल पाती है । विना प्रामाणिक आधार लिए केवल कल्पना के भरोसे कलम को आगे बढ़ाना, आजकल मुझे पसन्द नहीं रहा है । यही कारण है कि श्रमण सूत्र के लेखन का कार्य यथाशीघ्र प्रगति नहीं कर सका । अबकी बार आगरा में कुछ दिन ठहरना हुआ तो विचार श्राया कि वह कार्य पूरा कर दूँ । यहाँ साधन सामग्री भी उपलब्ध थी । कुछ दिन तो कार्य ठीक चलता रहा । परन्तु इधर दो महीने से मैं बराबर स्वस्थ रहा। सिरदर्द ने इतना तंग किया है कि अधिक क्या लिखूँ ? ये पंक्तियाँ भी सिरदर्द की दु:स्थिति में ही लिखी जा रही हैं। हाँ, तो कुछ दिन लेखन कार्य बन्द भी रक्खा, पर कुछ विशेष स्वास्थ्य लाभ न हुश्रा । और इसी बीच व्यावर संघ का अत्याग्रह होने से वहाँ के चातुर्मास के लिए स्वीकृति दे दी । अब प्रश्न यह आया कि जैसे भी हो कार्य पूर्ण किया जाय, अन्यथा अधूरा ही छोड़कर विहार करना होगा । हाँ, तो सिर दर्द होते हुए भी लिखने में जुटना पड़ा । इधर लिखता था और उधर मुद्रण बड़ी तीव्र गति से चल रहा था । इस वार बड़ी विकट स्थिति में मुके गुजरना पड़ा है। अतः मैं जैसा चाहता था, अथवा मेरे साथी मुझसे जैसा चाहते थे, वैसा तो मैं नहीं लिख सका हूँ । प्रारम्भ में ही अपनी दुर्बलता के लिए क्षमा याचना कर लेता हूँ । फिर भी कुछ लिखा गया है । केवल 'न' से कुछ 'हाँ' अच्छी ही होती है । हाँ, तो मैं लिख गया हूँ । अब क्या है, कैसा है, यह सब विचार करना, पाठकों का काम है । सम्भव है कहीं इधर-उधर लिखा गया हो, मूल की भावनाएँ स्पष्ट न हो पाई हों, विपर्यास भी हुआ हो, उन सबके लिए मुझे आशा है ग्रात्मीयता की पवित्र भावना से सूचनाएँ मिलेंगी और For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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