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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गोचरचर्या-सूत्र कि न रात में आहार ग्रहण करना और न रात में खाना । सूर्योदय होने के बाद जब तक आवश्यक स्वाध्याय न कर ले तब तक आहार नहीं ग्रहण किया जा सकता। यह नियम भोजन के सयम के लिए कितना यावश्यक है ? . २-कालातिक्रान्त दोष यह है कि- प्रथम प्रहर में लिया हुआ भोजन चतुर्थं प्रहर में खाना । भगवान महावीर ने मर्यादा बाँधी है कि साधु अपने पास तीन प्रहर से अधिक काल तक भोजन नहीं रख सकता। पहले प्रहर का लिया हुआ तीसरे प्रहर तक खा सकता है, यदि चतुर्थं प्रहर में खाए तो प्रायश्चित्त लेना होता है। यह नियम संग्रह वृत्ति को रोकने के लिए है। यदि संग्रह वृत्ति को न रोका जाय तो भिक्षा का पवित्र आदर्श ही नष्ट हो जाता है । अधिक से अधिक माँगना और अधिक से अधिक काल तक संग्रह किए रखना, भगवान महावीर को सर्वथा अनभीष्ट है । जैन साधु का भिक्षा संग्रह अधिक से अधिक तीन पहर तक है, कितना आदर्श त्याग है ? ३--मार्गातिकान्त दोष यह है कि अर्धयोजन से अधिक दूर तक अाहार ले जाना । साधु के लिए नियम है कि वह अावश्यकता पड़ने पर अधिक से अधिक अर्धयोजन अर्थात् दो कोस तक भोजन ले जा सकता है, इसके आगे नहीं। यह नियम भी अधिक संग्रह की वृत्ति को रोकने और भोजन की तृष्णा को घटाने के लिए है। अन्यथा भोजन-गृद्ध साधु विहार यात्रा में भोजन से ही लदा हुआ फिरेगा, संयम का आदर्श कैसे पालेगा? ४-प्रमाणातिक्रान्त दोष यह है कि- प्रमाण से अधिक भोजन करना । जैन मुनि, यदि भोजन अधिक काल तक रख नहीं सकता तो अधिक खा भी नहीं सकता। भोजन, शरीर निर्वाह के लिए है और वह बत्तीस ग्रासों के द्वारा हो सकता है। अतः ३२ ग्रासों से अधिक साहार करना, मुनि के लिए सर्वथा निषिद्ध है। यह नियम भी भिक्षा For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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