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* शिवमहिम्नस्तोत्रम् * तनोतु नो मनो मुदं विनोदिनीमहनिशं पर:श्रियः परम्पदन्सदङ्गजविषञ्चयः ॥१४॥ ___ भाषार्थः-- इन्द्र नगरी की अप्सराओं के शिर से गिरी हुई निवारीके पुष्पोंकी मालाओं के पराग की उष्णतासे उत्पन्न हुए पसीने से शोभायमान परमशोभा का सर्वोपरि स्थान और रात दिन आनंद देनेवाले जो सदाशिव के शरीर की कान्तिका समूह है सो हमारे मनके आनन्द को बढ़ावे ॥ १४ ॥ प्रचण्डवाडवानल प्रभाशुभप्रचारिणी महाष्टसिद्धिकामिनीजनावहूतजल्पना विमुक्तवामलोचनाविवाहकालिकध्वनिः शिवेतिमंत्रभूषणा जगज्जयायजायताम् ॥१५॥
भाषार्थ:--- भयदायक वड़नानल के अग्नि की प्रभा के समान अमंगलों का नाश करनेवाले, अष्टसिद्धियों के सहित स्त्रियाँ जो गीत गाती हैं और शिव-शिव यह मन्त्र है भूषण जिसका ऐसी स्वयंमुक्तभाव जगत् की माता पार्वतीजीके विवाह के समय की ध्वनि संसार की जयकारिणी होवे ॥ १५ ॥ पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यःशम्भुपूजनमिदं पठति प्रदोषे। तस्यस्थिसंरथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैवसुमुखों प्रददातिशंभुः।। उन्नावमण्डलस्य बरोदा ग्राम निवासी पं० आनन्दमाधव दीक्षितात्मज पण्डित महारासदीनदीक्षित कृत भाषाटीका शिवताण्डव स्तोत्रम् सम्पूर्ण ।
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