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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ढाल त्रीजी। राग धनासिरि॥ सहीय समाणी _ आवो वेगें ॥ ए देशी॥ ॥ उत्शपिणी अवसर्पिणी घारो, बिहुँ मलीने बारजी ॥ वीश कोडाकोडी सागर तेहy, मान कह्यु निरधारजी ॥ १४ ॥ पहेलो थारो सूसम सुसमा, सागर कोडाकोडी चारजी॥ त्यारें ए श्री शत्रुजय गिरिवर, एंसी जोयण अवधारजी ॥ १५ ॥ त्रस्य कोडाकोडी सागर आरो, बीजो सुसम नामजी॥ त दा कालें ए श्री लिमाचल, सीतेर जोयण अनिराम जी॥ १६ ॥ त्रीजो सूसम दूसम यारो, सागर को डाकोडी दोयजो ॥ शाठ जोयगर्नु मान शत्रुजय, त दा काल तूं जोयजी ॥ १७ ॥ चोथो दूसम सूसम जागो, पांचमो दूसम थारोजी॥हो दूसम दूसम कहिजे, ए त्रय यश्य विचारोजी ॥ १७ ॥ एक को डाकोडीसागर केलं, एहनुं कहियें मानजी ॥ चोथें आरे श्री शत्रुजय गिरि, पचाश जोयण परधानजी ॥ १७ ॥ पांच में बहे एकवीश एकवीश, सहस्स वरस वखाणोजी ।। बार जोयएने सात हायनो, तदा वि मलगिरि जाणोजी॥२०॥ तेहनगी सदा काल ए ती रथ, शाश्वतुं जिनवर बोलेजी ॥ झपन देव कहे पुं For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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