SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५५ ) १३ नवनय पामी नीकल्या, यावच्चा सुत जेह ॥ सहस्स मुनिशुं शिव वखा, मुक्ति निलयगिरि तेह || ॥ २७ ॥ सिद्धा० ॥ १३ ॥ १४ चंदा रज बिंदु जणा, उना इलेगिरि अंग ॥ करी व वने वधावियो, पुष्पदंत गिरिरंग ॥ २८ ॥ सि० ॥ १५ कर्मकला नवजल तजी, इहां पाम्या शिवस ॥ प्राणी पद्म निरंजनी, वंदो गिरिमहापद्म ॥ २९॥ सि० ॥ १६ शिववडु विवाह उत्सवें, मंमप रचियो सार ॥ मुनिवर वर बेठक नी, पृथ्वी पीठ मनोहार॥३०॥ सि० १७ श्रीगुन गिरि नमो, जड़ते मंगलरूप ॥ जल तरुरज गिरिवर तणी, शीस चढावे नूप ॥ ३१ ॥ सि०॥ १८ विद्याधर सुर अपहरा, नदी शत्रुंजी विलास ॥ करता हरता पापने, नजीयें नवि कैलास ॥३२॥ सि० ॥ १५ बीजा निरवाणी प्रभु, गइ चोवीशी मजार ॥ तस गणधर मुनिमां वडा, नामे कदंब अणगार ॥ ३३ ॥ प्रभु वचने यस करो, मुक्ति पुरिमां वास ॥ नामे कंद गिरि नमो, तो होय लील विलास ॥ ३४ ॥ सि० ॥ २० पातालें जस मूलबे, उज्वल गिरिनुं सार ॥ त्रिकरण योगें वंदतां, अल्प होये संसार ॥ ३५॥ सि० ॥ २१ तन मन धन सुत वल्लना, स्वर्गादक सुख For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy