SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५२) | अथ ॥ ॥ पंमित श्रीवीरविजयजीकृत ॥ श्रोशत्रुजय तीर्थना एकवीश नाम संबंधी एक वीश गुण याश्रयी एकवीश खमासमण आपवाना दोहा प्रारंनः ॥ १ सिमाचल समरो सदा, सोरत देश मजार ॥ म णुय जनम पामी करी, वंदो वार हजार ॥ १ ॥ अंग वसन मन नूमिका, पूजोपगरण सार ॥ न्याय इव्य विधि शुश्ता, शुक्षि सात प्रकार ॥ ॥ कार्तिकशुदि पूनम दिने,दश कोटी परिवार ॥ज्ञाविड वारिखिन्नजी, सिह थया नरधार ॥३॥ तिणे कारण कार्तिकी दिने, संघ सकल परिवार ॥ थादिजिन सनमुख रही, ख मासमण बहु वार ॥ ४ ॥ एकवीश नामे वरणव्यु, तिहां पहेलुं अनिधान ॥ शत्रुजय शुक रायथी, ज नक वचन बदु मान ॥५॥ यहींयां “ सिक्षाचल स मरो सदा" ए हो प्रत्येक खमासमण दीठ कहेवो॥१॥ २ समोसस्या सिक्षाचलें, पुमरीक गणधार ॥ ला ख सवा माहातम कयुं, सुरनर सना मजार ॥ ६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy