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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५०) अनंत, गुणो फल वरियें रे ॥ पुंरुरिकादिक नाम, एकवीरा लीजें रे || जिम मनवंबित काम, सघला सीजे रे ॥ एए ॥ करिये पंच स्नात्र, रायण यादे रे ॥ तिम रुडी रथ यात्र, प्रभु प्रसादे रे ॥ वली नवाणु वार, प्रदक्षणा फिरियें रे, स्वस्तिक दीपक सार. तेता करीयें रे ॥१०॥ पूजा विविध प्रकार, नृत्य बनावो रे ॥ इम सफल करी अवतार, गुणी गुण गावो रे ॥ निज अनुसारें सक्ति, तीरथ संगे रे ॥ तुमे साधु साहमी न क्ति, करजो रंगे रे ॥ ११ ॥ पालीताणु धन्य, धन्यते प्राणी रे ॥ जिहां तीरथ वासी जन्न, पुण्य कमाणी रे ॥ प्रह नगमते सुर, कपनजी नेटो रे || करी दस त्रिक याद पूर, पाप समेटो रे ॥ १२ ॥ जिहां जनितासर पाल, नमी प्रभु पगलां रे ॥ मूंगर जणी उजमाल ॥ जरीयें मगलां रे ॥ वचमां भूखण वाव्य, जोइने चा लो रे ॥ तुमे गुण गातां शुन नाव, सायें माहलो रे ॥ १३ ॥ तुमे धूपघटी करमांहिं, जूला देता रे ॥ व डनी बाया मांहिं, ताली लेता रे || यावी तलेटी ग ए, तनु सुची करियें रे ॥ पूरव रीत प्रमाण, पढी परवरियें रे || १४ इणीपरें तीरथ माल, नावे नए से रे ॥ जिणे दीतुं नयण निहाल, विशेषे सुपाड़ो रे ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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