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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३ ) रायणवृक्ष सोहामणो, जिहां जिनेश्वर पाय ॥ ते० ॥ सेवे सुरनर राय ॥ ७४ ॥ पगलां पूजी कवनतां, उपराम जेहने चंग ॥ते ॥ समता पावन अंग ॥ ७५ ॥ विद्याधरज मजे बहु विचरे गिरिवर श्रृंग || ते० ॥ चडते नवरस रंग ॥ ७६ ॥ मालती मोगर केतकी, परिमन मोहे भृंग ॥ ते० ॥ पूजो नवि एकंग ॥ ७७ ॥ जित जिनेसर जिहां रह्या, चोमासुं गुणगेह ॥ ॥ ते० ॥ बाणी यविहड नेह ॥ ७८ ॥ शांति जि नेसर शोलमां, शोल कषाय करि अंत ॥ ते० ॥ च तुर मास रहंत ॥ ७९ ॥ नेमिविना जिनवर सवे, या व्या जेसे ठाम ॥ ० ॥ शुद्ध करे परिणाम ॥ ८० ॥ नमि नेम जिनयंतरें, यजित शांतिस्तव कीथ ॥ ते ० ॥ नंदिषेण प्रसिद्ध || १ || गणधर मुनि उवद्याय तिम, जान लह्या केइ लाख ॥ ते० ॥ ज्ञानप्रमृत रस चाख ॥ ॥ १८॥ नित्य घंटा टंकारवें, रणजये जल्लरी नाद ॥ ते ॥ डुडुनि मादल वाद ॥ ८३ ॥ जेणे गिरें नरत नरेश्व रें, कीथो प्रथम उद्धार ॥ ते॥ मणिमय मूरति सा र ॥ ८४ ॥ चौमुख चनगति दुःख हरे, सोवनमय सुविहार || ते० ॥ यय सुख दातार ॥ ८५ ॥ इ त्यादिक महोटा कह्या, शोल नार सफार ॥ ते ० ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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