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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११ ) ॥४ जानमि विनमि विद्याधरा, दोय कोडी मुनि साथ ॥ ते । पाम्या शिवपुर खाय ॥ ४९ ॥ कृपनवंसी नरपति घणा, इणे गिरि पोता मोह || ते० ॥ टाव्या घातिक दोष ॥ ५० ॥ राम जरत बिंदु बंधवा, त्रण कोडी मुनियुत्त ॥ ते० ॥ इणेगिरि शिव संपत्त ॥ ५१ ॥ ना रद मुनिवर निर्मलो, साधु एकाएं लाख || ते० ॥ प्रवचन प्रगट ए जाख ॥ ५२ ॥ सांब प्रद्युम्न कृषि कला, साढी खाठे कोड ॥ ते० ॥ पूर्वकर्म विछोडि ॥ ॥५३॥ यावच्चासुत सहससुं, अणसंण रंगें कीध ॥ ते || वेगे शिवपद लीध ॥ ५४ ॥ शुक परमाचारज वली, एक सहस अणगार || ते० || पाम्या शिवपुर द्वार ॥ ५५ ॥ शैल सूरि मुनि पांचसें, सहित दुधा शिवनाह ॥ ० ॥ अंगे घरी उत्साह || ५६ || इस बहु सिद्धा इसे गिरें, केतां नावे पार ॥ ते० ॥ शास्त्रमांदे अधिकार ॥ ५७ ॥ बीज इहां समकित तलु, रोपे यातम जोम ॥ ते० ॥ टोले पातक स्तोम ॥ ए८ ॥ ब्रह्म स्त्री चूण गो हत्या, पापें नारित जेह ॥ ते ० ॥ पोहोता शिवपुर बेह ॥ ५९ ॥ जग जोतां तीरथ सवे, ए सम अवर न दीव |ते ॥ तीर्थमांहे कि ॥६०॥ धन धन सोरत देश जिहां, तीरथ मांहे सार ॥ ते ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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