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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६ ) पगला प्रभुता, जे पेखीरे मोह्युं मुज मन्नके ॥ जे० ॥ ॥ ११ ॥ धन्य धन्य ते जग जीवडा, जे रहे शत्रुंजय पा स ॥ यहनिसि कपन सेवा करे, वली पूजेरे मनने उल्ला सके ॥ ० ॥ ११९॥ श्राज सखी मुज खांगणे, सुरतरु फलियो सार ॥ कूपन जिनेसर वांदीयो, हवे तरियोरे नवजलनिधि पारके ॥ जेंट्यो ० ॥ १२०॥ शोल डत्री यशो मासें, गुदि तेरसी कुज वार ॥ यहम्मदाबाद नयर मांहे, में गायो शत्रुज उद्धारके || नेट्यो | १२१ asana गुरु पति, श्री धन्नरत्न सूरिंद ॥ तस शिष्य तसपट जयकरु, गुरु पतिरे श्रमररत्न सूरिंद के ॥ जेटयो० ॥ १२२ ॥ विजयमान तस पटधरू, श्री देवरत्न सूरीश || श्री धनरत्न सूरिशना शिष्य पंमितरे नानुमेरू गलीशके ॥ नेट्यो ० ॥ १२३ ॥ तसपद कमल नमर जणे, नयसुंदर दे याशीश || त्रिभुवन नायक सेवतां, हवे पूगीरे श्रीसंघजगीशके ॥ नेट्यो ॥ १२४ ॥ ॥ कलश ॥ इम त्रिजग नायक मुक्तिदायक, वि मल गिरि मंकण धणी ॥ उद्धार शत्रुंज सार गायो, थुयो जिन नक्के घणी ॥ जानु मेरु पंमित शिष्य दो य कर || जोडी कहे नयसुंदरी, प्रभु पाय सेवा नित्य करेवा, देहो दरिशन जयकरो ॥ १२५ ॥ इति ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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