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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) त महायसा ॥ अतिबलन थने बलवीर्य, कीरतिको र्य अने जलवीर्य ॥ ५॥ ए साते दूआ सरखी जो ड, नरत थकी गया पूरव कोड ॥ दमवीय याठ में पाट हवो, तिणे नधार कराव्यो नवो॥ एए ॥ ६ ३सोइ प्रशंस्यो घणु, नाम अजवाव्युं पूरवज तणु ॥ नरत तणीपरें संघवी थयो, बीजो उधार ते एहनो कह्यो ॥६० ॥ जरत पाटें ए आते वली, नुवन पारी शामां केवली ॥णे थावे सवि राखी रीत, एक न लोपी पूर्वज रीत ॥ ६१ ॥ एकसो सागर वोल्या जि सें, इशानेश् विदेहमां तिसें ॥ जिनमुख सिगिरि सु गी विचार, तेणे कीधोत्रीजो नहार ॥ ६॥ एकको डी सागर वोली गयां, दीग चैत्य विसस्थल थयां ॥ माहिंऽ चोथो सुरलोकें, कोधो चोथो नकार गरिं॥ ॥६३॥ सागर कोडो गया दश वली,श्रीब्रह्मघणु मन रुली ॥श्री शत्रुजय तीरथ मनोहार, कीधो तेणे पांच मो नकार ॥ ६५ ॥ एक कोडी लाख सागर अंतरें, चमरेशदिक नवन नरें ।। बो इंइ नवनपति त णो, ए उधार विमलगिरि नणे ॥ ६५ ॥ पचाश कोडी ताख सागर तणु, आदि यजित विचे अंतर जणु ॥ तेह विचे सूदम दूवा नकार, ते कहेतां नवी For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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