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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra शत्रुजय कल्पवृ० ॥ ४०२ ॥ 2525525252525252525255 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नामेण वद्धमाणं चित्तं पेछाहरं गिरिसरिच्छं । कुडअंडावयवं कूडं गभहिं समं ॥ ९८० ॥ कप्पतरुसमं दिव्वं एत्थंभं च वह पासायं । तस्स पुण सच्चओ चिचअ ठियाणि देवीण भवणाई ॥ ९८१ ॥ अह सीह [ साह ] वाहणीविअ सेज्जाहर विट्ठरं दिणयराभं । ससिकिरणसन्निभाई चमराह मउअफरिसाई ॥ ९८२ ॥ वेरुलिअविमलदंडो छत्तं ससिसन्निहं मुहच्छायं । विसमोइयाउ गयणं लंघंती पाउयाओ य ॥ ९८३ ॥ अणग्धा दिव्बाई' चैव भूसणवराई । दुग्भिज्जं चिअ कवयं मणिकुंडलजुवलयं कंतं ॥ ९८४ ॥ खरगं गया य चक्कं कणयारि सिलीमुहा विअ अमोहा । विविहार महत्थाई अण्णाणि वि एवमाईणि । पण्णास सहरसाई कोडीणं साहणस्स परिमाणं । एक्का य हवइ कोडी अन्भहिआ पवरघेणूणं ॥ ९८६ ॥ सतरि कुलकोडीओ अहियाउ कुटुंबिआण जिट्ठाणं । साएयपुरवरीए वसंति धणरयणपुण्णाओ ।। ९८७ ॥ कइला ससिहर सरिसोबमाइ भवणाई ताण सब्वाई' । बलयगवामहिसीहि समाउलाई सुरम्माई ॥ ९८८ ॥ पोक्खरिणिदीहियासु अ आरामुज्जाणकाणणसमिद्धा । जिणवरघरेसु रम्मा देवपुरी चैव साएया ॥ ९८९ ॥ जिणवरभवणाणि तहिं रामेणं कारिआणि बहुआणि । हरिसेणेण व तइआ भविअजणानंदिअकराई ॥ ९९० ॥ गामपुरखेड़ कबडणयरी सा पट्टणाण मज्झत्था | इंदपुरी व कया साया रामदेवेण ॥ ९९९ ॥ सब्वो जणो सुरूवो सच्चो धणधन्नरयणसंपुष्णो । सब्बो करभररहिओ सच्वो दाणुज्जओ णिच्वं ॥ ९९२ ॥ For Private and Personal Use Only 1525 35525452520 2525 ॥ ४०२ ॥
SR No.020701
Book TitleShatrunjay Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrendrasagar, Mahabhadrasagar
PublisherJain Agam Mandir Samstha
Publication Year1994
Total Pages581
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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