SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra शत्रुज्जय कल्पवृ० ॥ १३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तओ लग्ग परमत्थि" किं कुर्वन्ति तपोधनाः ' जग सकलओ जिणि ऊधरिओ दिवसकयं किं हरइ पावं' ? | एतासां तु समस्यानां पूरणं न महीधरैः । यदा कृतं तदा वीरसेनः प्राहेति ताः प्रतिः ।। १७ ।। घरमझे घररहिआ चउवीस जिणा ( जया ) निरावरणा | केवलनाणसमग्गा सव्वन्नू हुंति अरिहंता || १८ || [ धुट् २४ ] रोचते या सुपुण्यानां पापानां या न रोचते । गौराङ्गी वल्लभा पत्युः सा नारी मम कथ्यताम् ॥ १९ ॥ [ राका पूर्णिमा ] भिल्लस तिन्नि भज्जा एगा पभणेइ पानीयं पाइ । बीआ मग्गड़ मंसं तइआ गवरावए गीयं । २० । [ सरो नत्थि ] किमाशीर्वचनं राज्ञां ? का शंभोस्तनुमण्डनम् ? । कः कर्त्ता सुखदुःखानां ? मूलं च सुकृतस्य कः ? ।। २१ ।। [ जीव-रक्षा-विधिः ] नयरि भमंत दिट्ठ मई केसरि चडिओ हत्थि । जलनिही परघरि रमड़ तओ लग्गउ परमत्थि ।। २२ ।। [ क्षुरपलकः ] For Private and Personal Use Only i5255255252525525525525525 ॥ १३ ॥
SR No.020701
Book TitleShatrunjay Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrendrasagar, Mahabhadrasagar
PublisherJain Agam Mandir Samstha
Publication Year1994
Total Pages581
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy