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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०५ ) अर्थ- हम उन्ही को मुनि कहते हैं जो समस्त कला शील और संयम आदि गुणों सहित हैं । और जो बहुत दोषों के स्थान हैं और अत्यन्त मलिन चित्त हैं वे बहुरूपिये हैं श्रावक समान भी नहीं है । ते धीर वीर पुरुसा खमदमखग्गेण विष्फुरंतेण | दुज्जय पवळवलुदर कसाय भडणिज्जिया जेहिं ॥१५६॥ ते धीर वीर पुरुषाः क्षमादमखङ्गेन विस्फुरता । दुर्जय प्रवलवलद्ध कषाय मटा निर्जिता यैः ।। अर्थ - वही धीर वीर पुरुष हैं जिन्हों ने क्षमा, दम रुपी तीक्ष्ण खड्डू (तलवार) से कठिनता से जीतेजाने योग्य बलवान और बल से उद्धत ऐसे कषाय रूपी सुभटों को जीत लिया है । भावार्थ जो कषायों को जीतते हैं वह महान योधा हैं, संग्राम में लड़ने वाले योधा नहीं हैं घण्णाते भयवान्ता दंसण णाणग्गपवरहच्छेहिं । विसय मयहरपडिया भवियाउत्तरियाजेहिं ॥१५७॥ धन्यास्ते भयवान्ता दर्शनज्ञानाग्रप्रवरहस्ताभ्याम् । विषयमकरधरपतिताः भव्याउत्तारितायैः ॥ अर्थ - विषय रूपी समुद्र में डूबे हुए भव्य जीवों को जिन्होंने दर्शन ज्ञान रूपी उत्तम हाथों से निकाल कर पार किया है वे भय रहित भगवान धन्य हैं प्रशंसनीय हैं। मायावेल्लि असेसा मोहमहातरुत्ररम्पिआरूढा । विसय विसफुल्लफुल्लिय लुणंति मुणिणाणसच्छेहिं ॥ १५८ ॥ मायावलीमशेषां मोहमहातरुवरे आरुढाम् । विषय विषपुष्पपुष्पितां लुनन्तिमुनयः ज्ञानशस्त्रैः ॥ अर्थ - दिगम्बर मुनि समस्त मायाचार रूपी बेलि को जो मोह रूपी महान वृक्ष पर चढ़ी हुई है और विषय रूपी जहरीले फूलों से फूली हुई है सम्यग ज्ञान रूपी शस्त्र से काटते हैं। १४ For Private And Personal Use Only
SR No.020699
Book TitleShatpahud Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundakundacharya
PublisherBabu Surajbhan Vakil
Publication Year1910
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P001
File Size7 MB
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