SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३७) अतिभयङ्कर दुःखो भोगववां पडशे. अरेरे! हवे शुं करवुं ?" इत्यादि घणो ज शोक करेछे. माटे हे जीव ! ले, के जेथी मरण तुं अत्यारथीज धर्मकरणी करी समये पश्चात्ताप करवो न पडे, अने परलोकमां कारमां दुःख सहन करवां न पडे ॥ ५४ ॥ . · धी धी धी !!! संसारं, देवो मरिऊण जं तिरी होइ । मरिऊण रायराया, परिपच्चइ नरयजालाए ॥ ५५ ॥ जे संसारमां महासमृद्धिवंत अने अप्सराओना विलासो वडे सुखमां मग्न थयेलो देव जेवो उत्तम जीव पण मरीने तिर्यंच थाय छे. वळी जे संसारमा छ खंडनो भोक्ता, चोसठ हजार सुंदरीओनो स्वामी, तथा जेनी चोसठ हजार यक्षो अने बत्रीश हजार मुकुटबद्ध राजाओ रात्रि - दिवस सेवा करी रह्या छे, एवो राजाधिराजमहाराजा चक्रवर्ती पण मरीने नरकनी ज्वाला वडे पकवायछे, अने परमाधामीओए करेली भयंकर वेद * धिग् घिग् धिक् 1 11 संसारं, देवो मृत्वा यत् तिर्यग् भवति । मृत्वा राजराजः, परिपच्यते नरकज्वालया ॥ ५५ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020692
Book TitleSartham Bhavvairagya Shatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA M and Company
PublisherA M and Company
Publication Year1918
Total Pages75
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy