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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir maramanane का श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥२॥ २. योग-संबंध. EMAD१ स्थानातथा योग एटले संबंध, ते जो उपाय उपयरूप लहीए तो अनुयोग ए उपाय अने अर्थावंगमादि उपेय, तो ते संबंध प्रयो ध्ययने जनना कथनथी ज कहेवायो छे, तेथी' अवसर लक्षण' अनुयोगनो संबंध कहेवा योग्य छ अर्थात् आ अनुयोगना दानमा योगद्वार. (देवामां ) कोण संबंध एटले अवसर छे ? अथवा अनुयोगना देवामां कोण लायक छ ? तेमां अनुयोगना दानमा भव्य, मोक्षमार्गमां अभिलापावाळो, गुरुनां उपदेशमा निश्चल-स्थिर अने आठ वर्ष जेने दीक्षा लीधे थया होय एवा जे प्राणी (साधु ) होय तेने ज सूत्रथी (मूलपाठथी ) पण आपवा योग्य छे-ए आ अवसर छे अने योग्य पण ते ज छे. यत उक्तम्| तिवरसपरियागस्स उ,आयारपकप्पनाममज्झयणं। चउवरिसस्स य सम्म, सूयगडं नाम अंगति॥१॥ दसकप्पव्ववहारा, संवच्छरपणगदिक्खियस्सेव । ठाणंसमवाओऽवि य, अंगे ते अट्ठ वासस्स ॥२॥ ____ अर्थ-त्रण वर्षना पर्यायवालाने तो आचार प्रकल्प नामर्नु अध्ययन अर्थात् निशीथसूत्र, अने चार वर्षना पर्यायवालाने सारी रीते सूयगडांग नामे सूत्र, (२) पांच वर्षनी दीक्षावालाने ज दशाश्रुतस्कंध, बृहद्कल्प अने व्यवहारसूत्र, तेमज आठ वर्षनी दीक्षावालाने ठाणांग तथा समवायांग सूत्रनी वाचना आपया योग्य छे. (३) अन्यथा बीजी रीते आ सूत्रनो अनुयोग देवामां आज्ञाभंग आदि दोष थवा पामे छे. १. अर्थनो बोध. For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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