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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विरतपणाए पंडितपणुं होवाथी बालपंडित - संयतासंयत कहेवाय १, स्थिता' - मूलस्वरूप रहेली अर्थात् विशुद्विने प्राप्त न थती अने संगिने नहिं प्राप्त थती कृष्णादि लेश्या छे जे ( मरण ) ने विषे ते स्थितलेश्य ( मरण), संक्लिष्ट-संक्लेशने प्राप्त ती लेश्या छे जे ( मरण ) ने विषे ते संक्लिष्टलेश्य ( मरण ), तथा पर्यवा:- अवशिष्टथी विशुध्धि विशेषो ( विशुविना तरतमयोगो) प्रतिसमयमां थयेला छे जे लेश्याने विषे ते पर्यवजातलेश्यमरण. अहिं पहेलां कृष्णादिलेश्यावाळो ज्यारे कृष्णादिलेश्यावाळा नरकादिने त्रिषे ज उपजे छे त्यारे प्रथम स्थितलेश्य मरण होय छे. ज्यारे ( पहेलां ) नीलादिलेश्यावाळो कृष्णादिलेश्या वाळामां उत्पन्न थाय छे त्यारे बीजुं संक्लिष्ट मरण होय छे अने ज्यारे बळी (पहेलां ) कृष्णादिलेश्यावाळो नील- कापोतले श्यावाळामां उत्पन्न थाय छे त्यारे श्रीजुं पर्यवजातलेश्य मरण होय छे. श्री भगवती सूत्रमां छेल्ला मे मरणने लगतुं कथन कहेलुं छे, ते आप्रमाणे " से णूणं भंते ! कण्हलेसे नीललेसे जाव सुक्कलेसे भवित्ता काउलेसेस नेरइएस उजाड़ ?, हंता गोयमा !, से केगद्वेगं भंते! एवं बुवइ ?, गोयमा ! लेसाठाणेसु संकिलिस्समागेषु वा विसु मासु वा काउलेस्सं परिणमड़ २ काउलेसेसु नेरइएस उववज्जइ "त्ति० प्रश्न हे भगवन् ! निश्चय कृष्णलेश्य, नीलेश्य यावत् शुक्ललेश्यावाळो थईने कापोतलेश्यावाळा नैरयिकोने विषे उत्पन्न थाय ? उ०- हे गौतम! हा, थाय. शा माटे हे भगवन् ! एम कहो छो ? हे गौतम! संक्लिश्यमान अथवा विशुद्धमान लेश्याना स्थानोने विषे कापोतलेश्यामां परिणमे छे, कापोतलेश्यामां परिणमीने कापोतलेश्यावाळा नैरयिकोने विषे उत्पन्न थाय छे. आ कथनना अनुसारे पाछला बे सूत्रमां पण स्थितलेश्य विगेरेना विभाग जाणवो. पंडितमरणने विषे लेश्यानुं संक्लिश्यमानपणुं नथी, केम के संयतपणोन For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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