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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir xxxxxxxxXXXXXXKXxxxxxxxxxxxxxxx हेतुओ छे तो अहिं फक्त कषायो ज केम कर्मबंधनां कारण कह्या ? समाधान-कपायोर्नु पापकर्मना बंधमां प्रधानपणु जणाववा माटे कयुं छे. स्थिति अने अनुभागना उत्कृष्ट कारणपणाथी अथवा अत्यंत अनर्थना करनार होवाथी तेओर्नु प्रधानपणुं-मुख्यपणुं छे. कमु छ केको दुक्खं पावेजा, कस्स वसोक्खेहि विम्हओहोजाको वा नलहेज्ज मोक्खं ? रागद्दोसाजइ न होजा१२० जो रागद्वेष न होत तो कोण दुःख पामत ? अथवा कोने सुखमां विस्मय थात? अथवा मोक्षने कोण प्राप्त न करत ? [अर्थात् बधा प्राप्त करत, पण राग द्वेष ज अटकावनार छे] अथवा बंधना हेतुओनो देशग्राहक आ सूत्र छ, कारण के द्विस्थानकनो अनुरोध होवाथी दोष नथी. कहेल वे स्थानवडे बांधेल पापकर्मनी जेम उदीरणा, वेदना अने निर्जरा प्राणीओ करे छ तेम त्रण सूत्रवडे कहे छ-'जीवे 'त्यादि. विशेष ए के-अबसरने प्राप्त न थया छतां उदयमां जे लावे छे ते उदीरणा कहेवाय छे. अभ्युपगमेन-अंगीकार करवावडे थयेली अथवा अंगीकार करवामां थयेली ते अभ्युपगमिकी, ते मस्तकनो लोच करवावडे अने तप-आचरणादिवडे वेदना-पीडा जाणवी अने बीजी उपक्रमबडे-कर्मना उदीरण कारणबडे थयेली अथवा ते कर्मना उदीरणमां थयेली औपक्रमिकी, ते ज्वर अने अतिसारादि व्याधि उत्पन्न थवावडे वेदना जाणवी. एवं मिति० कहेल चे प्रकारथी ज वेदे छ-उदीरित थया छतां तेना विपाकने भोगवे छे 'निर्जरयन्ति' प्रदेशोथी खपावे छे. (सू०९६) कर्मनी निर्जरामां तो देशथी अथवा सर्वथी भवांतरमां के मोक्षमा जतां शरीरथी नीकळ थाय छे ए हेतुथी सूत्रपंचकाडे ते विषय वर्णवे छे. Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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