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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गस्त्र सानुवाद २ स्थान| काध्ययने उद्देशः ४ जीवाजीवक्तव्यता ९५ सूत्रम् UP KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX प्रमाणवाळी उत्सर्पिणी छे, एटला ज प्रमाणवाळी अवसर्पिणी छे. (१) कालना विशेष(भेद)नी माफक ग्रामादि वस्तुना विशेषो पण (क्षेत्रभेदो) जीव अने अजीव ज छे ए हेतुथी बे पदद्वारा सडतालीश सूत्रोवडे कहे छे-'गामे त्यादि० अहिआं | प्रत्येकमां 'जीवाई या'-इत्यादि आलापक कहेवो. गामादिनुं जीव अने अजीवपणुं तो प्रतीत ज छे. कर (टेक्ष) वगेरेथी गम्य अर्थात् ज्यां कर वगेरे लेवातो होय ते गाम अने जेओमां कर न लेवातो होय ते न-कर अर्थात् नगर (१), निगम-ज्यां वेपारीओनो निवास होय ते निगम अने जेमां राजाओनो अभिषेक थाय छे ते राजधानी (२), धृळना गढयुक्त जे स्थान होय | ते खेट अने जे कुनगर होय ते कर्बट (३), जेनी चारे दिशाए अर्धयोजनथी आगळ गामो रहेल होय ते मंडळ अने जे स्थानमा जलनो अने स्थलनो एम बे प्रकारनो मार्ग होय ते द्रोणमुख (४), जे स्थानमा जलमार्ग अथवा स्थलमार्ग ए बनेमांथी एक मार्गवडे जq-आवq थाय ते पत्तन (पाटण) अने लोह वगैरेनी उत्पत्तिवाळी जमीन ते आकर अर्थात् खाण (५), जे तीर्थस्थान होय ते आश्रम अने सम (सरखी) भूमिमां खेती करीने जे दुर्गभूमिस्वरूप अर्थात् कठण भूमिमां खेडूतो धान्योने रक्षाने माटे राखे ते संवाह (६), ज्यां सार्थ अथवा सेना ऊतरे ते सन्निवेश अने नदीना कांठा पासे वसवानुं स्थान-गायोने रहेवार्नु स्थान ते घोष (७), विविध वृक्षनी लतावडे शोभायमान अने कदली (केळा) वगेरेथी ढांकेल मृहने विषे स्त्री सहित पुरुषोना जे रमवाना स्थानभूत ते आराम, तथा पत्र, पुष्प, फल अने छाया युक्त वृक्षोवडे शोभायमान, विविध प्रकारना वेषवाळा, उत्कृष्ट मानवाळा एवा घणा जनाने भोजन करवाने माटे जे स्थानने विषे जर्बु थाय ते उद्यान (८), ज्यां एक जातना वृक्षो होय ते वन अने अनेक जातना उत्तम वृक्षो होय ते वनखंड (९), चोखूणी ते वापी (वाव) अने जे वृत्त एटले गोळ होय अथवा जेमां XKKKKKXxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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