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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie xxxxxxxxxxxxxXXXXXXXXXXXXXXXXXXX अउणट्ठा दोन्नि सया, उणसत्तरि सहस्स पंचलक्खाय। सोमणस मालवंता, दीहारुंदा दस सयाइं॥९५॥ देवकुरुथी पश्चिम दिशाए विद्युत्प्रभ अने उत्तरकुरुथी पश्चिम दिशाए गंधमादन पर्वत छे. ते बन्नेनी लंबाई त्रण लाख, छप्पन हजार, बसो सत्यावीश योजननी छे. देवकुरुनी पूर्व दिशाए सौमनस अने उत्तरकुरुनी पूर्व दिशाए माल्यवान पर्वत छ. | ते बन्नेनी लंबाई पांच लाख, उगणोतेर हजार, बसो ने उगगसाठ योजननी छे. आ प्रमाण पूर्व मेरुनी समीपमा जाणवू अने पश्चिम मेरुनी समीपमा तो विद्युतप्रभ अने गंधमादननी लंबाई कही ते त्यां सौमनस अने माल्यवंतनी जाणवी; कारण के त्यां संकीर्ण क्षेत्रमा रहेल छे अने जे सौमनस अने माल्यवंतनी लंबाई कही ते त्यां विद्युत्प्रभ अने गंधमादननी जाणवी, कारण के त्यां लांचा क्षेत्रमा रहेल छे. वळी चारे पर्वतो वर्षधर पर्वतनी पासे एक हजार योजन पहोळा छे. सव्वाओऽवि णईओ, विक्खंभोव्वेहदुगणमाणाओ। सीयासीयोयाणं, वणाणि दुगुणाणि विक्खंभो ॥९६॥ [विस्तरतो वनमुखानीत्यर्थः] वासहरकुरुसु दहा [वर्षधरेषु कुरुषु च ये हुदा इत्यर्थः ], नहीण कुंडाई तेसु जे दीवा । उब्वेहुस्सयतुल्ला, विक्खंभायामओ दुगुणा ॥९७॥ [ जंबूद्वीपापेक्षयेति ] धातकीखंडद्वीपमा बधी नदीओ जंबूद्वीपमा रहेल नदीनी अपेक्षाए पहोळाई अने ऊंडाईमां बेवडा प्रमाणवाळी छे. KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX RRRRM For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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