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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥१३४ ॥ हरिवर्ष अने रम्यक्वप क्षेत्रने विषे बे पल्योपम आयुष्यनुं प्रमाण अने शरीरनी ऊंचाइ बे गाउनी छे. तेओने छह भक्ते आहार अने चोसठ दिवस पर्यंत अपत्यनी पालना होय छ, तथा तेओनी पासळीओ एकसो ने अठ्यावीश जाणवी. 'जंबू' इत्यादि० 'सुसमदुस्सम' ति० सुषमदुष्षम नामना त्रीजा आराना अनुभावनी ऋद्धि ते सुषमदुष्पमऋद्धि, शेष पूर्ववत् जाणQ. कह्यु छ केगाउयमुच्चा पलिओ-वमाउणो वजरिसहसंघयणा । हेववएरन्नवए, अहमिंदणरा मिहुणवासी ॥७॥ चउसट्ठी पिष्टिकर-डयाण मणुयाण तेसिमाहारो।भत्तस्स चउत्थस्स य,उणसीतिदिणाणुपालणया।७१॥ हैमवत अने ऐरण्यवत क्षेत्रने विषे मनुष्यो एक गाऊना ऊंचा, एक पल्योपमना आयुष्यवाळा, वज्रऋषभनाराच संघयणवाळा, अहमिंद्र (स्वामी-सेवकभाव सिवायना) अने युगलीआ होय छे, ते मनुष्योने पांसळीओ चोसठ होय छे, चोथ भक्ते (एकांतरे ) आहार होय छे अने तेओने ओगण्यासी दिवस सुधी अपत्यनी पालना होय छे. 'जंबू' इत्यादि० 'दूसमसुसमं' ति० दुष्पमसुषमा एटले चोथा आरानो भाव, तेना संबंधवाळी जे ऋद्धि ते, दुष्पमसुषमज जाणवी. बाकी पूर्वनी माफक समजबु. कडुं छे केमणुयाण पुवकोडी, आउं पंचुस्सियाधणुसयांइ।दूसमसुसमाणुभावं,अणुहोंतिणरा निययकालं७२ पूर्वविदेह तथा अपरविदेहने विषे मनुष्योनुं आयुष्य क्रोडपूर्वतुं अने ऊंचाइ पांचसो धनुष्यनी हाय छे. तथा दुष्षमसुषमा २ स्थानकाध्ययने उद्देशः ३ सुपमादुःष मादिस्वरूपम् ८९ मूत्रम् Xxxxxxxxxxxxxxxxxxx x॥ १३४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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