________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
एएसु सुरबहूओ, वसंति पलिओवमद्वितीयाओ । सिरिहिरि धितिकित्तीओ, बुद्धीलच्छी सनामाओ॥६३॥ आ गाथानो भावार्थ उपर कहेवायेल छे. (१), 'जंबू' इत्यादि० तेमां रोहित नदी, महापद्मद्रहथी दक्षिण तरफना तोरणथी नीकळीने एक हजार, छसो पांच योजन कांइक अधिक (पांच कळा) दक्षिण दिशाए पर्वत उपर जड़ने (वहीने) हारना आकारने धारण करवावाळा, कंडक अधिक बसें योजनप्रमाणवाळा, मगर ( मत्स्य ) ना मुख जेवा पडनाळरूप प्रपात - प्रवाहबडे महाहिमवान पर्वतना रोहित नामना कुंडमां पडे छे. मगरना मुखनी जीभ एक योजन लांबी, साडाबार योजन पहोळी अने एक योजन जाडी छे, अने (रोहित नदी ) रोहितप्रपातकुंडमांथी दक्षिण दिशाना तोरणद्वारा नीकळीने, हैमवान क्षेत्रना मध्यभागमा रहेल शब्दापाती नामना वृत्तवैताढ्यपर्वतथी वे कोश दूर रहीने, अठ्यावीश हजार नदीओना परिवार सहित जगती (कोट) ने नीचे भेदीने पूर्व दिशाथी लवणसमुद्रमां जाय छे-भळे छे. प्रवाहमां एटले नीकळती वखते रोहित नदी साडावार योजन पोळी अने एक गाउ ऊंडी छे, त्यारपछी क्रमशः वृद्धि पामती मुख ( समुद्रप्रवेश ) मां एकसो पच्चीश योजन पोळी, अढी योजन ऊंडी तेमज बने पासे वे वेदिका अने वे वनखंडवडे युक्त छे. एवी रीते सर्व महानदीओ, पर्वतो, कूटो अने वेदिका वगेरेथी युक्त छे. हरिकान्ता नदी तो महापद्मद्रहथी ज उत्तरदिशान। तोरणद्वारा नीकळीने कंडक अधिक सोळसो ने पांच योजन सुधी उत्तर सन्मुख थइ, पर्वत उपरथी जइने कंडक बसें योजनप्रमाणवाळा प्रपात (धोध ) बडे हरिकांताकुंडमां तेम ज पडे छे. मगरना मुखनी जीभिका ( जीभ ) नुं प्रमाण पूर्व कहेल प्रमाणथी बेवडं जाणवुं. ते प्रपातकुंडथी उत्तरदिशाना तोरणद्वारा
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
***********-**********