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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir kxxxx KKKKKXxxxxxxxxxxxx•XXXXXX शीतोदा, ८ अपरविदेह अने ९ रुचक एवा पोतपोताना देवोना नामवाळा नव कूटो छे. अहिं पण बीजा अने छेला कूटना ग्रहणपूर्वक व्याख्यान करवू. (४), 'जंबू' इत्यादि० नीलवान वर्षधर पर्वतने विवे-१ सिद्ध, २ नील, ३ पूर्वविदेह, ४ शीता, ५ कार्ति, ६ नारीकांता, ७ अपरविदेह, ८ रम्यक् अने ९ उपदर्शन ए नव कूट छे. अहिं पण वीजा अने छेल्ला कूटर्नु पूर्वनी माफक ग्रहण जाणवू. 'एव 'मित्यादि० रुक्मी वर्षधर क्षेत्रमां-१ सिद्ध, २ रुक्मी, ३ रम्यक, ४ नरकांता, ५ बुद्धि, ६ रौप्यकला, ७ हैरण्यवत् अने ८ मणिकांचन ए आठ कूट छे. बीजा ने छेल्ला कूटर्नु पूर्वनी माफक ग्रहण कर. 'पव'. मित्यादि० वर्षधर शिखरी पर्वतमां-१ सिद्ध, २ शिखरी, ३ हैरण्यवत्, ४ सुरादेवी, ५ रक्ता, ६ लक्ष्मी, ७ सुवर्णकला, ८ रक्तोदा, ९ गंधापाती, १० ऐरावती अने ११ तिगिच्छि-ए अगियार कूट छे. अहिं पण बीजा अने छेल्ला कूटर्नु पूर्वनी जेम ग्रहण करवू. (५). (सू० ८७) । जंबूमंदर० उत्तरदाहिणेणं चुल्लहिमवंतसिहरीसु वासहरपव्वएसु दो महदहा पं. २०-बहसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवटंति, आयामविक्खंभउब्बेहसंठाणपरिणाहेणं, तंपउमद्दहे चेव पुंडरीयबहे चेव, तत्थ णं दो देवयाओ महड्डियाओ जाव पलिओवमद्वितीयाओ परिषसंति. तं०-सिरी चेव लच्छी चेव, एवं महाहिमवंतरुप्पीसु वासहरपव्वएसु दो महद्दहा पं० २० XXXXXX-XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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