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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद KAKRAIN २ स्थानकाध्ययने उद्देशः ३ वर्षधरादि स्वरूपम् ८७ सूत्रम् KAKKXXXXXXXXXXXXXXXXXX) णेणं चल्लहिमवंते वासहरपव्वए दो कूडा पं०२०-बहसमतुल्ला जाव विवखंभुच्चत्तसंठाणपरिणाहेणं, तं०-चल्लहिमवंतकूडे चेव वेसमणकूडे चेव, जंबूमंदरदाहिणेणं महाहिमवंते वासहरपच्चए दो कूड़ा पं० त०-बहुसम० जाव महाहिमवंतकूडे चैव वेरुलियकूडे चेव, एवं निसढे वासहरपव्वए दो कूडा पं० २०-बहुसमा० जाव निसढकृडे चेव रुयगप्पभे चेव ४, जंबूमंदर० उत्तरेणं नीलवंते वासहरपवए दो कडा पं० तं-बहुसम० जाव० सं०-नीलवंतकडे चेव उबदसणकूडे चेव, एवं रुप्पिमि वासहरपव्वए दो कूडा पं० बहुसम० जाव तं-रुप्पिकूडे चेव मणिकंचणकूडे चेब, एवं सिहरिमि वासहरपवते दो कूडा पं० तं०-बहुसम० जाव तं०-सिहरिकूडे चेव तिगिच्छिकूडे चेव ५। सू० ८७ ___ मूलार्थ:-जंबुद्वीपना मेरुपर्वतनी उत्तर अने दक्षिण दिशाए बे वर्षधर पर्वतो ( कहेल छे, ते आ-) बहुसमतुल्य, अविशेष, नानात्वरहित, अन्योअन्य उल्लंघन करता नथी तेमज लंबाई, पहोलाई, उंडाई, संस्थान अने परिधवडे समान छे. ते आ-चुल्ल( लघु )हिमवान अने शिखरी, एवी रीते महाहिमवान अने रुप्पी (रुक्मी), एम ज निषध अने नीलवान. जंबूद्वीपना मेरुपर्वतनी उचर अने दाक्षण दिशाए हैमवत अने हैरप्यवत क्षेत्रमा वे वृत्तवेत.ढ्य पर्वत कह्या छे-बहुसमतुल्य, विशेषरहित, नानात्वरहित, परस्पर उल्लंघन करता नथी, ते आ प्रमाणे-शब्दापाती अने विकटापाती.ते बेमां वे महर्द्धिक देवो यावत् पल्यो ॥१२१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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