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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्था-1 नाङ्गसूत्र सानुवाद वर्तन वाळी सेनावडे अन्यनी सेना साथे संग्राम करे छे. (९), समुद्घात-मारणान्तिक वगेरे. (१०), काळसंयोग-काळवडे करायली ४२ स्थानकाअवस्था. (११), आयाति-गर्भथी नीकळवू. (१२), मरण-प्राणनो त्याग. (१३), 'दोण्हं छविपवत्ति० बन्नेना 'छवि'त्ति० ध्ययने मतुप् प्रत्ययना लोपथी चामडीवाळा 'पब्व 'त्ति० पर्वो-संधिनां बंधनो छ, 'छवियत्त 'त्ति० एवो पाठ छे त्यां चामडर्डाना उद्देशः ३ योग(संबंध)थी छवि तेज छविक, ते 'अत्त'ति० आत्मा-शरीर अर्थात् छविकात्मक शरीर, 'छविपत्त'त्ति आ पाठांतरमा प्राप्त थयेल उपपातोद्चामडी एवो अर्थ छे. गर्भस्थ मनुष्य अने तिर्यचोनो पांचमा सूत्रथी चौदमा सूत्र सुधीनो संबंध जोडवो. (१४), 'दो सुक्के'त्यादि. बेनी (मनुष्य अने पंचेंद्रियतिर्यंचनी) वीर्य अने रुधिरवडे उत्पत्ति थाय छे. (१५), 'कायट्टिति'त्ति० काय-निकायमा पृथ्वी | वगेरेनी माफक असंख्यात उत्सर्पिणी सामान्यरूपे रहेवू ते कायस्थिति, भवने विषे स्थिति अथवा भवरूप स्थिति ते ८५ सूत्रम् भवस्थिति अर्थात् भवकालस्वरूप. (१६), 'दोण्हत्ति० बन्नेनी (मनुष्य अने पंचेंद्रियतिर्यंचोनी) सात अथवा आठ भवग्रहणरूप कायस्थिति होय. पृथ्वीकायिक वगैरेनी पण कायस्थिति छे. [ मूल पाठमां ] पंचेंद्रियतिथंच शब्दवडे पृथ्वी आदिनो निषेध जाणवो नहि, कारण के सूत्रोर्नु अयोग्यतुं निषेध करवापणुं छे. (१७), 'दोण्हे 'त्यादि० देवादिनी फरीने देवत्वादिमां उत्पत्ति न होवाथी देव अने नारकोने भवस्थिति ज होय छे. (१८), 'दुविहे'त्यादि० अद्धा-काळ, काळप्रधान आयुष्य अर्थात् आयुकर्मविशिष्ट अद्धायुष्य. वर्तमान भवनो नाश थये छत काळांतरमा अनुगामी-जेम मनुष्यना आयुष्यनी माफक पाछळ जनारं, १. पन्नवणा सूत्रना कायस्थितिपदमां एकेद्रियादिनी कायस्थिति कहेल छे. XXXXxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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