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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥११॥ ध्ययने १ सूत्रम्. समास (विग्रह) करवो, ५ पछी विचार-तर्क (शंका ) करवो, ६ पछी दृषणने दूर करवू (शंकानुं समाधान ) ते प्रत्यवस्थान, ते पण नयोना मत विशेषोवडे करवू. एम दरेक मूत्रनुं व्याड्यान करवू. तेमां सूत्र एटले संहिता ते कहेवायेल छे, केमके | सूत्रानुगम संहितारूप छे. कयु छे के-"होई कयत्यो वोत्तुं, सपयच्छेयं सुयं सुयाणुगमो” इति. सूत्रानुगम पदच्छेद सहित सूत्रने कही कृतार्थ थाय छे. अस्खलितादि गुण सहित उच्चारेल सूत्रमा केटलाएक अर्थो डाह्या पुरुषोने समजायेल ज छे. आ कारणथी संहिता व्याख्यानो भेद थाय छे अने न जाणेल अर्थने जाणवा माटे पदादि, व्याख्याना भेदो प्रवर्ते छे. त्यां व्याख्या भेदमा-श्रुतं मया आयुष्मन् ! तेन भगवता एवमाख्यातम्' इति आवी रीते पदोनी व्यवस्था करी त्यारे सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेपनो अवसर छे. तेमां आ व्यवस्था छे. जत्थ उजं जाणेज्जा, निवखेवं निविखवे निरवसेसं । जत्थवि यण जाणेज्जा, चउक्कयं निविखवे तत्थ॥२५ ज्यां जे (जेटला) निक्षेपा जाणी शकाय त्यां ते (तेटला) नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव वगेरे निर्विशेष (समस्त) निक्षिप्त करवा, अने ज्यां वधारे न जाणी शकाय त्यां चार निक्षेपा ओछामा ओछा अवश्य स्थापन करवा. तेमां नामश्रुत अने स्थापनाश्रुत प्रतीत छे. उपयोग रहित भणनारनुं सूत्र अथवा पत्रक (पानां) अने पुस्तकमा रहेढुं-लखेलु ते द्रव्यश्रुत छे अने भावश्रुत तो श्रुतना उपयोगवाळाने होय छे. अहिं श्रोत्रंद्रियद्वारा थयेल उपयोगलक्षणरूप भावश्रुतवडे १. पत्रक अने पुस्तकमा लखेलुं सूत्र भावश्रुतर्नु कारण होवाथो ते द्रव्यश्रुत छे. ॥११॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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