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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ १०४ ॥ www.kobatirth.org उभय स्थितिवाळा ( संख्यात अने असंख्यातकाळनी स्थितिवाळा ) होय छे. ज्योतिष्क अने वैमानिको तो असंख्या तकाळनी स्थितिवाळा ज होय छे. (१३), बोधिदंडकमां बोधि-जैनधर्मनी प्राप्ति सुलभ छे जेओने ते सुलभबोधिको, अने जैनधर्मनी प्राप्ति दुर्लभ छे जेओने ते दुर्लभवोधिको (१४), पाक्षिकदंडकमां शुक्ल - विशुद्धपणाथी जे पक्ष-स्वीकार ते शुक्लपक्ष, ते वडे | जे विचरे छे ते शुक्लपाक्षिको शुक्लपणुं तो क्रियावादीपणाए छे. कर्तुं छे के किरियावाई भव्वे गो अभव्वे सुक्कपfree in favorखए- क्रियावादी भव्य होय छे, पण अभव्य होता नथी, (तेम) शुक्लपाक्षिक होय छे पण कृष्णपाक्षिक होतो नथी. अथवा शुक्लोनो - आस्तिकपणाए विशुद्धानो, जे पक्ष-समूह ते शुक्लपक्ष, तेमां थयेला ते 'शुक्लपाक्षिको, अने तेनाथी विपरीत पक्षवाळा ते कृष्णपाक्षिको. (१५), चरमदंडकमा जेओने ते नारकादि छेल्लो भव होय अर्थात् फरीथी ते नारकादिमां उत्पन्न नहिं थाय, कारण के मोक्षे जवाथी ते चरम कहेवाय छे अने बीजा एटले जेने फरीथी नारकादिमां उपज छे ते अचरम कहेवाय छे. (१६). एवी रीते शरूआतथी अढार दंडको कहेवाया. (सू० ७९) पूर्वना सूत्रमां वैमानिको चरम अने अचरमपणाए कहेवाया, तेओ अवधिवडे अधोलोक वगेरेने जाणे छे, तेथी तेना जाणवामां आवतां जीवना बे प्रकार वर्णवे छे दोहिं ठाणेहिं आया अधोलोगं जाणइ पासइ तं० - समोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया अहेलोगं जाइ पास असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया अहेलोगं जाणइ पासइ, आधोहि समोहतासमा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only स्थानकाध्ययने उद्देशः २ समुद्घात वैक्रियेतर तोऽवधिः देशसर्वतः शब्दाद्याः ८० सूत्रम् ( १०४॥
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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