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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ १०१ ॥ ******** www.kobatirth.org कनुं वर्णन छे. नारक वर्जीने श्रेवीश दंडकमांथी पृथ्वीकायिकोमां उत्पन्न थाय छे. ' णोपुढवविकाइयत्ताए ' ति० देव अन नारकना (१४) दंडक छोडीने अपूकाय वगेरे (९) दंडेकमां जाय छे. ' एवं जाव मणुस्स' ति० जेम पृथ्वीकायिको, 'दुगनिया' विगेरे अभिलापोवडे कहेला छे एवी रीते ए ज अभिलापोवडे अपकायिक वगेरे मनुष्य पर्यंतना दंडको 'पृथ्विकायिक' शब्दना स्थानमां अप्कायिक वगेरेनो व्यपदेश ( कथन ) करनारा आ अभिलापोवडे कहेवा. व्यंतर वगेरे पूर्वे अतिदेश करायेल - कहेवाइ गयेला छे. (२). ( सू० ७८ ) जीवना अधिकारथी भव्यादि विशेषणवडे सोळ सूत्रपाठथी दंडकनी प्ररूपणा कहे छे: दुविहा नेरइया पं० तं०-भवसिद्धिया चेव अभवसिद्धिया चेव, जाव वेमाणिया १, दुविहा नेरइया पं० तं० - अणंतरोववन्नगा चेव परंपरोववन्नगा चेव, जाव वेमाणिया २, दुविहा णेरड्या पं० तं०-गतिसमावन्नगा चैव अगतिसमावन्नगा चेव, जाव वेमाणिया ३, दुविहा नेरइया पं० तं०पढमसमओववन्नगाचे अपढमसमओववन्नगा चेव, जाव वेमाणिया ४, दुविहा नेरइया पं० तं०-आहारगा चैव अणाहारगा चेव, एवं जाव वेमाणिया ५, दुविहा णेरइया पं० तं - उसासा चेव णोउस्सासगा चेव, जाव वेमाणिया ६, दुविहा नेरइया पं० तं०-सइंदिया चेव अणिंदिया चेव, १. पुढवि शब्दथी एक पृथ्वीनो दंडक अने नोपुढवो शब्दथी नव दंडक कहेल छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ स्थानका ध्ययने उद्देशः २ नारकाणां भव्यत्वादि ७९ सूत्रम् ॥ १०१ ॥
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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