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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद १९१॥ EKAKKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX वगैरेमांज छे. पृथ्वीकायिकोनुं सूक्ष्म अने बादरपणुं आपेक्षिक नथी. (१), 'एव' मिति एवी रीते पृथ्वीकायिकना मूत्रनी माफक अप्० तेज० वायु० अने वनस्पतिकायादिना सूत्रो कहेवा. आ कारणथी कहे छे-'जावे'-त्यादि (२-५), 'दुविहे' त्यादि० पांच सूत्रो-पर्याप्तनामकर्मना उदयमा वर्तनारा जीवो, जे चार पर्याप्तिने पूर्ण करे छे ते पर्याप्ता छे अने अपर्याप्तनामकर्मना उदयथी जे पोतानी (चार) पर्याप्तिओने पूर्ण न करे ते अपर्याप्ता छे. अहिं पर्याप्ति एटले शक्ति-सामर्थ्यविशेष जाणवू. ते शक्ति, पुद्गलद्रव्यना उपचयथी उत्पन्न थाय छे. पर्याप्ति छ प्रकारे छे, ते आ प्रमाणेआहारसरीरि दियपज्जत्ती-आणपाणभासमणे । चत्तारि पंच छप्पिय, एगिदियविगलसन्नीणं ॥२५॥ १ आहार, २ शरीर, ३ इंद्रिय, ४ श्वासोच्छ्वास, ५ भाषा अने ६ मन-ए छ पर्याप्ति छे. तेमां एकेंद्रियने चार, विकलेंद्रिय अने असंज्ञी पंचेंद्रियने पांच अने संज्ञी पंचेंद्रियने छ पर्याप्ति होय छे. १ आहारपर्याप्ति नाम-खल (नकामो भाग) अने रसनी परिणमनशक्तिरूप छे, २ शरीरपर्याप्ति-सात धातुपणे रसनी परिणमनशक्तिरूप छे, ३ पांच इंद्रियोने योग्य पुद्गलोने ग्रहण करीने अनाभोग(ईच्छा रहित)थी थयेल वीर्यवडे इंद्रियने तैयार करवानी शक्तिरूप इंद्रियपर्याप्ति, ४ उच्छ्वास अने निःश्वासने योग्य पुद्गलोने ग्रहण करीने उच्छ्वास-निःश्वासरूपे परिणमावीने आन-प्राणपणे नीकळवा(मकवा)नी १. जेम नाळीयेरनी अपेक्षाए नारंगी नानी छे, अने नारंगीनी अपेक्षाए चीकु नाना छे, तेम पृथ्वीकायिक जीवोमां नथो परंतु सूक्ष्म-बादरपणुं वास्तविक छे. २. अहिं लब्धिअपर्याप्तनी अपेक्षाए आ हकीकत जणावेल छे. २ स्थानका ध्ययने उद्देशः १ पृथव्यादीनां परिणा__मेतरी ७३ सूत्रम् XXXXXX XX. ॥९ ॥ kxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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