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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥९॥ १ स्थानाध्ययने उपक्रम वर्णन. HEETLESEANNELEYEXHD ETTE १. ओघ. ओहो जं सामन्नं, सुयाभिहाणं चउव्विहं तं च। अज्झयणं अज्झीणं, आओ झवणा य पत्तेयं ॥१९॥ नामाइ चउब्भेयं, वन्नेऊणं सुआणुसारेणं। एगट्ठाणं जोज्झं, चउसुंपि कमेण भावेसुं ॥२०॥ (युग्म) __श्रुतनुं जे सामान्य नाम तेने ओघ कहेवाय छे. ते चार प्रकारे छे-१ अध्ययन, २ अक्षीण, ३ आय अने ४ क्षपणा. ते प्रत्येक अध्ययनादिनुं श्रुतानुसारे नामादिक चार प्रकारे वर्णन करीने क्रमशः तेओना भाव निक्षेपामां एक स्थाननी योजना | करवी. त्यां अध्यात्म मन ते शुभ मनने विषे गमन थर्बु अर्थात् जेथी आत्मानुं गमन थाय छे अने जेथी अध्यात्म शब्दवाच्य जे शुभ मन तेनुं आत्माने विषे लई आवq थाय छे अथवा बोध, संयम अने मोक्ष ए त्रणनी जेथी अधिक प्राप्ति थाय छे ते अध्ययन जाणवू. प्राकृत शैलीरडे अज्झयण कहेवाय छे. भाष्यकारे आ संबंधमां का छे केजेण सुहप्पज्झयणं, अज्झप्पाणयणमहियमयणं वा।बोहस्स संजमस्सव, मोक्खस्स व तोतमज्झयणं॥२१ ___ आ गाथानो भावार्थ उपर कहेल छे. भणाय, विशेषपणे स्मरण कराय अने जणाय ते अध्ययन छे तथा निरंतर आपवा FF छतां पण जे क्षीण न थाय ( अथवा अव्युच्छित्तिनयथी आ लोकनी माफक कदी पण क्षीण न थाय ) ते अक्षीण, ज्ञानादिकना लाभनो हेतु होवाथी आय, पापकर्माना नाशनो हेतु होवाथी क्षपणा कहेवाय छे. कहां छ के * मूल अज्झप्पाणयण शब्द छे परंतु प्राकृत शैलीथी प्पा अने णकारनो लोप थवाथी अजयणं थाय छे. SHESHAMARINEETENYEKO ॥९ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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