SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ***** www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्वनी माफक (५), 'सुहुमे' त्यादि-बे सूत्रमां प्रथम अने अप्रथम समय वगेरेनो विभाग केवलज्ञाननी माफक जाणी लेवो. 'अहवे' त्यादि• उपशम श्रेणीथी पडनारनो जे संयम ते संक्लिश्यमान अने उपशमश्रेणी अथवा क्षपकश्रेणी प्रत्ये चडनारनो जे संयम ते विशुद्धयमान छे. (६), 'बादरे' त्यादि० वे सूत्र, बादरसंपेरायसरागसंयमनुं संयमना प्राप्तिकालनी अपेक्षाए प्रथमं- अप्रथमसमयपणुं छे. चरम (छेल्ला) अने अचरम ( छेल्ला सिवायना बीजा) समयपणुं तो जे पछी-एटले बादरसंपरायसरागसंयम पछी - सूक्ष्मसंपरायसरागसंयमने पामे अथवा असंयतपणाने पामे तेनी अपेक्षाए कहेवाय छे. 'अहवे'त्यादि ० उपशमश्रेणीवाळानुं अगर बीजानुं (छट्टा वगेरे गुणठाणावाळानुं) प्रतिपाती, अने क्षपकश्रेणीवाळानुं अप्रतिपाती ( संयम ) होय छे (७), सरागसंयम कहेवायो हवे वीतरागसंयम कहे छे-'वीयरागे 'त्यादि० उपशांत- प्रदेशथी पण नथी वेदाता कषायो जेने अथवा जेने विषे ते उपशांतकषायवीतरागसाधु अथवा उपशांतकषायवीतरागसंयम, ते अगियारमा गुणस्थानमां वर्तनार होय छे. सर्वथा नाश पामेल छे कषायो जेना ते क्षीणकपायसाधु बारमा गुणस्थानमा वर्तनार होय छे (८), 'उवसंते'त्यादि० बे सूत्र पूर्वनी माफक जाणवा (९), 'खीणेत्यादि, आत्मना स्वरूपने जे आच्छादन करे ते छद्मज्ञानावरणादिघातिकर्म, तेमां रहेनार ते छद्मस्थ-केवली नहि, बाकी पूर्वनी माफक जाणवुं. पूर्वोक्त स्वरूपविशिष्ट केवलज्ञान १ जे समयमां संयमनी प्राप्ति थाय ते प्रथमसमय अने बाकीना द्वितीय विगेरे समय ते अप्रथमसमय कहेवाय छे. २. कोई साधु नवमा गुणठाणाना छेछा समय पछी दशमा गुणठाणे जाय ते चरमसमयसूक्ष्मसंपरायनी अपेक्षाए कहेवाय छे. अथवा काल करो देवलोकमां जाय के संयमधी भ्रष्ट थई असंयत थाय तेनी अपेक्षाए चरमसमयपणुं कहेवाय छे, For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy